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Wednesday, March 25, 2009

किशोरियों की तरह कूदते-फाँदते

क्या होगा कोई मनुष्य?

क्या होगा
कोई मनुष्य ऐसा
जिसने
न उठाया हो लुत्फ
बादलों की लुकमींचणी का

क्या होगा
कोई मनुष्य ऐसा
जिसने
न देखा हो उल्काओं को
किशोरियों की तरह कूदते-फाँदते

क्या होगा
कोई मनुष्य ऐसा
जिस के पाँव
न जले हों जेठ की धूप में

क्या होगा
कोई मनुष्य ऐसा
जो न नहाया हो
भादों की बरसात में

क्या होगा
कोई मनुष्य ऐसा
जिस की हड्डियाँ
न ठिठुरी हों पूष मास में

अगर होगा
कोई मनुष्य ऐसा
तो अवश्य ही
रहता होगा
वह किसी
साठ सत्तर मन्जिले कठघरे में
किसी महानगर
कहलाते चिडिय़ा घर में।

2 comments:

  1. मैं बताऊँ....??चाहे कहीं भी क्यूँ ना रहे इंसान इस धरती पर....मगर उसे धरती के सारे रंग देखने ही होंगे....ठीक उसी तरह....जैसे सारे दुखः झेलने....!!कविता वाकई अच्छी है......भाई....!!

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  2. बहुत सुन्दर!!

    जिसने
    न उठाया हो लुत्फ
    बादलों की लुकमींचणी का

    -अभी पिछले १० दिनों से यही लुत्फ उठा रहा था दार्जलिंग और गंगटोक में. इसी वजह से उपस्थिति दर्ज न कर सका.

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