इन्तजार
प्रतीक्षा
रोज दोपहर तक
नयन बैठे रहते हैं
बाहर जंगले वाले दरवाजे पर
डाकिये की प्रतीक्षा में
उसके साइकल की घंटी पर
मन जा बैठता है
लैटर-बाक्स के
भीतर फिर सड़क पर
बैठे ज्योतिषी के तोते सा
ढ़ूंढ़ता है चिट्ठियों के ढेर में तुम्हारी
चिट्ठी जिसकी आस में अटकी है
सांस जो आई नहीं अब तक
कब आयेगी ?
bahut sundar rachana badhai
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लिखा है। बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...
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