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Wednesday, March 18, 2009

मैं हूँ उसकी हीर

1
मन् लोभी मन लालची,मन चंचल मन चोर
मन के हाथ सभी बिके,मन पर किस का जोर

तेरे मन ने जब कही,मेरे मन् की बात
हरे-हरे सब हो गये,साजन पीले पात


जिसका मन अधीर हुआ,सुनकर मेरी पीर
वो है मेरा राँझना, मैं हूँ उसकी हीर


तेरे मन पहुंची नहीं,मेरे मन की बात
नाहक हमने थे लिये,साजन फ़ेरे सात्


वो बैरी पूछै नहीं ,अब तो मेरी जात
जिसके कारण थे हुए,सारे ही उत्पात


सुनले साजन आज तू,एक पते की बात
प्यार कभी देखे नहीं.दीन-धरम या जात


मन की मन ने जब सुनी. सुन साजन झनकार
छनक् उठी पायल तभी,खनके कंगन हजार

मन फकीर है दोस्तो,मन ही साहूकार
मुझ में रह उनका हुआ,मन् ऐसा फनकार


मन की मन से जब हुई,साजन थी तकरार
जीत सका तू भी नहीं,गई तभी मैं हार
१०
मन की करनी देखकर.बौरा गया दिमाग
संबंधों में लगी तभी,बैरन कैसी आग ?
११
मनवा जब समझा नहीं,प्रीत प्रेम का राग
संबंधों घोड़े चढ़ा था,तभी बैरी दिमाग
१२
मन की हारे हार है,सभी रहे समझाय
समझा,समझा सब थके,मनवा समझे नाय

१३
मन की लागी आग तो ,वो ही सके बुझाय
जिसके मन् में,दोस्तो , प्रीत अगन लग जाय
१४
प्रीतम के द्वारे खड़ा,मनवा हुआ अधीर
इतनी देर लगा रहे,क्या सौतन है सीर
१५
मन औरत ,मन मरद भी,मन बालक नादान
नाहक मन के व्याकरण,ढूंढ़े सकल जहान
१६
मन तुलसी मीरा भया,मनवा हुआ कबीर
द्रोपदी के श्याम-सखा,पूरो म्हारो चीर
१७
अंगरलियां जब मन करे,महक उठे तब गात
सहवास तो है दोस्तो,बस तन की सौगात
१८
मन की मन से जब हुई,थी यारो तकरार
टूट गये रिश्ते सभी,सब् बैठे लाचार
१९
मन की राह अनेक हैं, मन के नगर हजार
मन का चालक एक है,प्यार,प्यार बस प्यार
२०
मन के भीतर बैठकर, मन की सुन नादान
मन के भीतर ही बसें,गीता और कुरान

1 comment:

  1. बहुत बढ़िया !
    घुघूती बासूती

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