देह तो मात्र जवान गठीली, उत्तेजक माशपेशियाँ तथा गोलाईयाँ हैं
पहले हमसरदारों, नवाबों,
राजाओं के गुलाम थे
फिर संतरियों
तथा मंत्रियों के
गुलाम बने
अब हम
पदार्थोन्मुखी हैं
यानी
बाजार के
विज्ञापन के गुलाम है
गुलाम हैं
साबुन, तेल, टी.वी.
स्टीरियों, कार,
कम्प्यूटर बेचती
नंगी मादा देह के
इस मादा देह का
अवगुठन नहीं,
मात्र नाम बदलते हैं।
देह तो मात्र
जवान गठीली,
उत्तेजक माशपेशियाँ तथा गोलाईयाँ हैं
हाँ इनके
नाम बदलते रहते हैं
जैसे
ऐश्वर्य, सुष्मिता, लारा दत्ता,
करिश्मा या करीना कपूर
अक्षय, अजेय यौवन के ख्वाब बेचते
पच्चीस साल के बुड्ढे, या साठ साल के जवान के
या फिर अन्दर का मामला है
का गोविंदा
या के.बी.सी. को लॉक करने वाला
बुढ़ाता निरीह अमिताभ
जिसपर तरस खाकर
हम खरीदते हैं हिमानी तेल
हालाँकि मालिश के लिए
न हमारे पास वक्त है
न ही सिर
कबन्धों के पास कभी सिर हुआ है?
जो हमारे पास होता।
उसके धमकाने पर
हम पहुँच जाते है अस्पताल
अपने शिशुओं को
पोलियों ड्राप्स दिलवाने
बस इसी तरह
गुलामी में कटे हैं
हमारे पूर्व जन्म
और
कट रही है यह उम्र भी
जैसे
तैसे
जैसे-तैसे कट रही जिन्दगी।
पूरा स्त्री-विमर्श है इस कविता में।
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