!!!

Thursday, December 30, 2010

मौसम झेल रहा मौसम का दंश-गीत







धुंध है
कोहरा है
ठिठुर-ठिठुर
बदन हुआ दोहरा है

झीलों में दुबके
बैठे हैं हंस
मौसम झेल रहा
मौसम का दंश
हर और ठिठुरन का पहरा है

परिजन घर में हैं
चोर इसी डर में हैं
राहगीर सभी
बटमारों की जद में हैं

टोपी पहन चौकीदार हुआ बहरा है

कोहरा
है झल्ला गया
सब तरफ़  बस
छा गया
जन जीवन हुआ, पिटा सा मोहरा है








हर सप्ताह मेरी एक नई गज़ल व एक फ़ुटकर शे‘र हेतु http://gazalkbahane.blogspot.com/

Saturday, December 25, 2010

जब विरह का जोगी अलख जगाता है

जब विरह का जोगी अलख जगाता है
तन झुलसे है और मन अकुलाता है

पलकें बोझिल हो जाती हैं
सांसे थम-थम जाती हैं
धड़कन रटती नाम पिया का
सुध-बुध सारी खो जाती है

तन इकतारा राग वैरागी गाता है

नींद परायी सपन पराये
मनवा एकाकी घबराये
सांसे तसल्ली दे  धड़कन को
धड़कन सांसो को समझाये

कौन भला ये बातें समझ पाता

जब विरह का जोगी अलख जगाता है
तन झुलसे है और मन अकुलाता है

हर सप्ताह मेरी एक नई गज़ल व एक फ़ुटकर शे‘र हेतु http://gazalkbahane.blogspot.com/