औरत
रो लेती है
हर छोटे या
बड़े दु:ख पर
और फिर
पांव पसार कर
पीठ मोड़कर सो जाती है
जब कि
पुरुष
रोता नहीं छीजता है,
खीजता है
दांत पीसता है
छत निहारता है
पंखे की पंखुडिय़ां गिनता है
बस जागता रहता है
सारा दिन
सारी रात
बिना बात
२
औरत को
समझने के लिये
गज-भर का
कलेजा चाहिये
दिल नहीं
दिल की जगह
भी भेज़ा चाहिये
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मै भला कब सुधरने वाला हूँ
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