मां एक याद
मां
ने
बहुत सरल
बहुत प्यारी
बहुत भोली
मां ने
बचपन में
मुझे
एक गलत
आदत सिखा दी थी
कि सोने से पहले
एक बार
बीते दिन पर
नजर डालो और
सोचो कि तुमने
दिन भर
क्या किया
बुरा या भला
सार्थक
या
निरर्थक
मां तो चली गई
सुदूर
क्षितिज के पार
और बन गई
एक तारा नया
इधर
जब रात उतरती है
और नींद की
गोली खाकर
जब भी
मैं सोने लगता हूं
तो
अचानक
एक झटका सा लगता है
और
मैं सोचते बैठ जाता हूं
कि दिन भर मैंने
क्या किया?कि
आज के दिन
मैं कितनी बार मरा
कितनी बार जिया
फिर जिया
इसका हिसाब
बड़ा उलझन भरा है
मेरा वजूद जाने कितनी बार मरा है
यह दिन भी बेकार गया
मैंने देखे
मरीज बहुत
ठीक भी हुए कई
पर नहीं है
यह बात नई
इसी तरह तमाम जिन्दगी गई
जो भी था मन में
जिसे भी माना
मैंने सार्थक
तमाम उम्र भर
वह आज भी नहीं कर पाया मैं
न तो कभी
अपनी मर्जी से जिया
न ही
अपनी मर्जी से मर पाया मैं।
!!!
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बहुत खूब ...
ReplyDeletena apni marji se jiya, na apni marji se mara.
ReplyDeletebahut khoob sunder rachna
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम थे
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना. शुभकामनायें.
ReplyDeleteआप तो सचमुच साहित्य के सखा हैं। भविष्य की शुभकामनाओं के साथ बधाई।
ReplyDeleteहृदय के तारों को छुने वाली रचना। बहुत खूब। कहते हैं कि-
ReplyDeleteकहानी मेरी रूदादे जहां मालूम होती है।
जो सुनता है, उसीकी दास्तां मालूम होती है।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
aadmi sone se pahale din par chintan manan kar le to bat ban jaye, narayan narayan
ReplyDeleteSundar abhivyakti, Swagat.
ReplyDeleteमित्रो ! आप सभी का आभार रचना अपनाने के लिये। प्रोत्साहन सदा उर्जावान होता है ।
ReplyDeleteश्याम सखा
dr sahab apne to sahitya walo ko mat de di.sabke sakha syam ji ko mera naman.
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