क्या
फर्क पड़ता है
मेरे
जीने या मरने से ?
क्योंकि
मैं ना तो
जीते जी धरती पर बोझ हूँ
ना ही
मेरे मरने से दुनिया
खाली होने वाली है
क्या फर्क पड़ता है
मेरे जीने या मरने से
हाँ कुछ अन्तर
अवश्य आएगा
उस जगह, घर या
आसपास में
जहां मैंने इस
नाकुछ जीवन
के पचास साल
गुजार दिए हैं
मेरे बिस्तर का
वह हिस्सा खाली हो जाएगा
जहाँ मैं सोता हूँ
और मेरी पत्नी
कहलाने वाली औरत
को अकेले सोना पड़ेगा
क्येांकि वह
एक घरेलू भारतीय
महिला है
तथा जवान होते
बच्चों की माँ है,
कोई और
विकल्प भी तो नहीं हैं
उसके पास।
मेरे बेटे के
पास आ जाएगा अधिकार
मेरी जमा पूँजी को
अपने हिसाब से खर्च करने
का
इसलिए उसके आँसू
उसका गम
पत्नी के गम की तुलना में
क्षणिक होगा
मेरे दफ्तर की कुर्सी भी
एक दिन
के लिए
खाली हो जाएगी
फिर काबिज
हो जाएगा उस पर
बाबू राम भरोसे
बहुत दिन
से प्रतीक्षा में है
बेचारा
मेरी पुरानी साइकिल
को ले जाएगा कबाड़ी
क्योंकि
वह नहीं रह जाएगी
पहले भी कब थी ?
इस घर के लायक।
अलबत्ता
‘बुश’ मेरा कुत्ता
शायद ‘मिस’ करेगा
सुबह सुबह
मेरे साथ टहलना।
क्योंकि कोई और उसे
बाहर नहीं ले
जाता अल सुबह ;
पर शायद
उसके बरामदे का फर्श
खराब करने की आदत
से तंग आकर
पत्नी संभाल लेगी ;
यह काम भी,
और बुश भी
भूल जाएगा
मेरा दुलारना डाँटना दोनों
क्या फर्क
पड़ता है
मेरे जीने से
या मरने से ?
जीते जी मैं
बोझ नहीं हूँ
धरती पर
और मेरे मरने से
दुनिया नहीं है
खाली होने वाली
!!!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बहुत सुन्दर रचना . कभी मेरे ब्लॉग का अवलोकन करने का कष्ट करें
ReplyDelete