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Tuesday, September 30, 2008

खत

खत आधी मुलाकात होते हैं ?
हांकुछ खत
आधी मुलाकातहोते हैं
इसीलिये तो हम और आप
खत की बाट जोहते हैं
खत में
कभी खुद को
कभी उनको टोहते हैं
कई-कई खत तो
मन को बहुत मोहते हैं
कई खत
दर्दे-दिल दोहते हैं
वे खत तो
सचमुच बहुत सोहते हैं
खतों की न जाने
कितनी परिभाषा हैं
मगर हर खत
की एक ही भाषा है
कुछ खत जेठ की धूप होते हैं
कुछ खत सावन की बरसात होते हैं
कुछ खत
आधी मुलाकात होते है
खतोंकी कहानीसदियों पुरानी है
खत की
बात मुश्किल समझानी है
खत की जात भला किसने जानी है
खत कभी दर्द
कभी खुशियां बांटते हैं
कभी माँ बनकर
सहलाते हैं
कभी पिता बनकर डांटते हैं
खत का
दिल सेबहुत पुराना नाता है
खत में लिखा
हर शब्द
रूह तक जाता है
मुझे तो खत का
का हर उनवान बहुत भाता है
कुछ खत दिवस से उजले
कुछ
खत सियाह रैन होते हैं
आपने देखा होगा
कुछ खत बहुत बेचैन होते हैं
कुछ खत खाली खाली
निरे दिखावटी होते हैं
कुछ खत
सहेजे ज़जबात होते हैं
खत आधी मुलाकात होते हैं ?
खत कभी गुलाब,
कभी केवड़े से महकते हैं
कभी-कभी तो हैं खत
अंगारे बन दहकते हैं
खत जाने कहां-कहां
जा
बहकते हैं
मन मीत
मिलने पर कोयल से
चहकते हैं
खत हमेशा
दिल से दिल की बात होते है
खत आधी मुलाकात होते हैं
मैने देखा है परखा है,जाँचा है
क्या आपने
कभी बिना दिल का खत बाँचा है
क्या नहीं मेरा यह कथन सचमुच साँचा है
खत पढ़्कर क्या नहीं
आपके दिल का मोर नाचा है
फोन व सेलुलर
के आगे खत हुआ
एक ढहता हुआ ढाँचा है
पर कुछ लोग
सचमुच मुझसे दीवाने हैं
इस युग में भी
ढूंढ़्ते खत लिखने के
बहाने हैं
कहे!क्या ?
खत गुजरे हुए जमाने हैं
लोग जो चाहे कह लें
मेरा दिल तो यह बात नहीं माने है
रोज एक खतलिखने की ठाने है
हर खत की
अपनी
खुशबू अपना अंदाज़ होता है
हर खत में छुपादिल का राज़ होता है
हर
खत लिखने वाला
शाह्जहां और
पढ़्ने वाला मुमताज होता है
कुछ खत
दीन-धर्म जात होते हैं
कुछ खत तो
फ्कीरों की जमात होते हैं
खत आधी मुलाकात होते हैं
कुछ
खतों मेंख्वाब ठहरे होते हैं कुछ खत तो
सागर से भी गहरे होते हैं
कुछ खत ज़मीं
कुछ खत आसमां होते हैं
कुछ खत तो उम्र भर की दास्तां होते है
कुछ खत गूंगे
कुछ खत वाचाल होते
हैं कुछ खत अपने
भीतर समेटे भूचाल होते हैं
मुझ सरीखे लोग
खतों को तरसते हैं
खत न मिलने पर
नैनो की राह बरसते हैं
कुछ खत दो दिन के
मेहमान होते हैं
कुछ खत बच्चों की
मुस्कान होते हैं
कुछ खत
बुढापे की की बात होते हैं
कुछ खत
जवानी की रात होते हैं
खत
क्या
सिर्फ़ आधी मुलाकात होते हैं ? -

Sunday, September 28, 2008

अंग सभी पुखराज तुम्हारे

मनमोहक अन्दाज तुम्हारे
सचमुच बेढ़्ब नाज तुम्हारे

मेरे मन के ताजमहल में
निशि-दिन गूंजें साज तुम्हारे

खजुराहो के बिम्ब सरीखे
अंग सभी पुखराज तुम्हारे

डर कर भागे चांद सितारे
जब देखे आगाज़ तुम्हारे

अपने दिल में हमने छुपाये
पगली कितने राज़ तुम्हारे

सुनना भूले गीत ग़ज़ल हम
सुन मीठे अल्फ़ाज तुम्हारे

कल थे हम,हां कल भी रहेंगे
जैसे हम हैं आज तुम्हारे

जब तक दिल में ‘श्याम’रखो तुम
हैं तब तक सरताज तुम्हारे

श्याम सखा 'श्याम' - एक परिचय

श्याम सखा ‘श्याम’
जन्म-२८ अगस्त १९४८ रोहतक
जननी-श्रीमति जयन्ती देवी
पिता-श्री आर.आर,शास्त्री
जन्म सहायिका-नान्ही दाई[पाकिस्तान चलीं गई बंट्वारे मे]
सम्प्रति- अनिवार्य -चिकित्सा ऐच्छिक-पठन-लेखन,छायांकन,घुमक्क्ड़ी
शिक्षा-डिग्रियां, एम.बी;बी,एस, एफ़.सी.जी.पी,एल.एल.बी[प्रथम] जीवन की पाठशाला में अनेक पीड़ाओं से आनन्द ढ़ूंढने की कला पूज्य पिताजी व एक स्नेहिल मित्र डाक्टर एन के वर्मा [सर्जन] अब इहलोक में नही दोनो
पुरस्कार: दोस्तो की गालियां रिश्तेदारों की जलन व डाह
मूल निवास- रूह कुछ टूटे दिलों में
पार्थिव शरीर-आधा दिन गोहाना अस्पताल में रात-रोहतक शेष वक़्त-सफर में गोहाना से रोहतक
लेखन= भाषा -हिन्दी,पंजाबी,अंग्रेजी,पंजाबी व उर्दू [देवनागरी लिपि में]
प्रकाशित पुस्तकें- ३ उपन्यास,३ कहानी सं,४ कविता सं.१ गज़ल सं,१ लघुकथा सं,एक दोहा सतसई,१ लोक कथा सं. प्रकाशन प्रतीक्षा में-कई विधाओं की १६ पुस्तकें
लेखन सम्मान- १ पं.लखमी चंद पुरस्कार [ हरियाणा साहित्य अकादमी का लोक-साहित्य व लोक संस्करिति पर सर्वोच्च पुर.राशि १ लाख रु]
२ अब तक हिन्दी पंजाबी हरयाण्वी की ६ पुस्तकें व ५ कहानियां हिन्दी व पंजाबी अकादमी द्वारा पुर.]
३ पद्मश्री मुकुटधर पांडेय [ छ्त्तीस गढ़ सरिजन सम्मान २००७
४ अम्बिका प्रसाद दिव्य रजत अलंकरण कथा सं अकथ हेतु २००७
५ कथा-बिम्ब कथा पुर.मुम्बई,
राष्ट्र धर्म कथा पु २००५ लखनऊ
६ सम्पाद्क शिरोमणि पु श्रीनाथ द्वारा साहित्य मंडल राजस्थान
७ रोटरी इन्टरनेशनल व अनेक संस्थाओं द्वारा सममानित
चिकित्सा क्षेत्र- चिकित्सा रत्न सम्मान-इन्डियन मेडिकल एशोसिएसन हरियाणा का सर्वोच्च सम्मान
विशेष= श्री श्रीलाल शुक्ल, डा.रामदरश मिश्र,डा नरेन्द्र कोहली व श्रीमति चित्रा मुदगल के कहानी सं, कविता सं पर पत्रों के अलावा लगभग ५०० पाठको के पत्र
एक उपन्यास कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय व महर्षि दयानन्द वि, के एम,ए फाइनल पाठ्यक्र्म मे एक कहानी भी
फोटो ग्राफी में कार्य के अतिरिक्त श्री अशोक बहल[फोटो ग्राफर आफ डैडी, चाहत,महेश भट्ट की फिल्मों व अन्य अनेक फिल्मों ,इम्तिहान व सैलाब सीरियल] के प्रथम फोटो शिक्षक होने का श्रेय
साहित्य पर अब तक पी,एच,डी हेतु एक शोध व एम फिल हेतु ३ लघु शोध सम्पन्न है
पता- जब सोने को जमीं है औढ़्ने को आसमां है दोस्तो फिर क्यों पूछते हो मेरा घर कहां
सम्पर्क- :shyamskha@yahoo.com", घुमन्तू भाष-०९४१६३-५९०१९ भारत

ये भी क्या जिन्दगी हुई साहिब

घर जला,रोशनी हुई साहिब
ये भी क्या जिन्दगी हुई साहिब

तू नहीं और ही सही साहिब
ये भी क्या आशिकी हुई साहिब

है न मुझको हुनर इबादत का
सर झुका, बन्दगी हुई साहिब

भूलकर खुद को जब चले हम ,तब
आपसे दोस्ती हुई साहिब

खुद से चलकर तो ये नहीं आई
दिल दुखा, शायरी हुई साहिब

जीतकर वो मजा नहीं आया
हारकर जो खुशी हुई साहिब

तुम पे मरकर दिखा दिया हमने
मौत की बानगी हुई साहिब

‘श्याम’ से दोस्ती हुई ऐसी
सब से ही दुश्मनी हुई साहिब

फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन

Wednesday, August 27, 2008

krishan janmastmi par mere do bhajan

सखी री,मोहे नीको लागे श्याम.
मोल मिल्यै तो खरीद लेउं मैं,दैके दूनो दाम
मोहिनी मूरत नन्दलला की,दरस्न ललित ललाम
राह मिल्यो वो छैल-छबीलो,लई कलाई थाम
मौं सों कहत री मस्त गुजरिया,चली कौन सों गाम
मीरां को वो गिरधर नागर,मेरो सुन्दर श्याम
सखी री मोहे नीको लागै श्याम
2
जब तैं प्रीत श्याम सौं कीनी
तब तैं मीरां भई बांवरी,प्रेम रंग रस भीनी
तन इकतारा,मन मृदंग पै,ध्यान ताल धर दीनी
अघ औगुण सब भये पराये भांग श्याम की पीनी
राह मिल्यो वो छैल-छ्बीलो,पकड़ कलाई लीनी
मोंसो कहत री मस्त गुजरिया तू तो कला प्रवीनी
लगन लगी नन्दलाल तौं सांची हम कह दीनी
जनम-जनम की पाप चुनरिया,नाम सुमर धोय लीनी
सिमरत श्याम नाम थी सोई,जगी तैं नई नवीनी
जब तैं प्रीत श्याम तैं कीनी

Wednesday, June 11, 2008

intzar


प्रतीक्षा
रोज दोपहर तक
नयन बैठे रहते हैं
बाहर जंगले वाले दरवाजे पर
डाकिये की प्रतीक्षा में
उसके साइकल की घंटी पर
मन जा बैठता है
लैटर-बाक्स के
भीतर फिर सड़क पर
बैठे ज्योतिषी के तोते सा
ढ़ूंढ़ता है चिट्ठियों के ढेर में तुम्हारी
चिट्ठी जिसकी आस में अटकी है
सांस जो आई नहीं अब तक कब आयेगी ?

chitी

कभी लिखो
एक चिठ्ठी तुम
तुम पत्र
लिखते हो
चिठ्ठी नहीं
लिखो
कभी एक चिठ्ठी
मुझे
पहले जैसी बेबाक
दूध-धुली
शैशवी मुस्कान
सी चिठ्ठी
मासूम
किशोर सीकुलाँचे
भरती चिठ्ठी
या फिर
अधखुली-रतनारी आँखों सी
जवान सी चिठ्ठी,
लड़्खड़ाती साँसों
अदन्त मुहं
झुर्रियों के जंगल
सी चिठ्ठी भी
लिखना
चाहो
तो लिख सकतेहो तुम
परन्तु
मत लिखना
अधेड़ परेशान सा पत्र
उससे तो
तुम्हारा
न लिख्नना
ही अच्छा है

Monday, June 9, 2008

चोर उच्चका

‘अजी सुनते हो’रसोई से सुनीता की आवाज थी‘आज बिजली का बिल भरने की आखिरी तारीख है.बिल ड्रैसिंग टेबुल की दराज में है लेते जाना.’ रमेश सुनीता का पति दफ्तर में देरी होने के कारण जला-भुना बैठा था.अब बिल की बात सुनकर और हड़बड़ा गया बोला‘मार्च के आखिरी दिन हैं,केजुअल लीव भी शेष नहीं हैं.बास छुट्टी नहीं देगा,तुम्ही भरना’. ‘ मगर मुझे बिट्टू के स्कूल जाना है,अभिभावक मिलन है आजऔर तुम खुद ही तो कहते हो कि आजकल घर से ज्यादा बाहर रहना चोर-उचक्कों को दावत देना है.पिछले सप्ताह जब मै अपनी सहेली को डाक्टर के पास ले गई थी तो कितना बड़ा भाषण दे डाला था तुमने,अब खुद ही बिल भरना’.सुनीता ने रसोई से ही जवाब दिया था.बिट्टू जो पास ही खड़ा था रमेश से पूछ बैठा‘पापा ! चोर-उचक्का क्या होता है ?रमेश ने अपना बैग उठाते हुए कहा ‘बेटे दफ्तर में देर हो जायेगी ,आकर बतलाऊंगा’ फिर जोर से कह उठा ‘सुनीता आज तो बिल तुम्हें ही भरना होगा’और तेजी से बाहर लपका. सड़क पर आफिस की बस का चालक हार्न बजा रहा था,रमेश अपराधी बना भाग कर बस में जा बैठा.आफिस पहुंचकर फाइलों में डूबा ही था कि बास की स्टैनो स्फूर्ति-सुन्दर-तेज-तर्रार,चुस्त-दुरुस्त बिलकुल वैसी जैसी सिनेमा या टी.वी सीरियल में दिखाई जाती हैं वैसी स्टैनो जो रमेश के साथ केबिन शेयर करती थी आ पहुंची.और अपना बैग खोलकर अपना मेक-अप जो अभी बिगड़ा भी नहीं था संवारने लगी.घंटी बजी और वह बास के केबिन में चली गई.स्फूर्ति को नौकरी में आये आये अभी कुल तीन-चार महीने हुए हैं .उसके पति आर्मी में कैप्टन हैं फ़ील्ड ड्यूटी पर हैं अत: परिवार को साथ नहीं ले जा सकता.स्फूर्ति कह चुकी है कि वह खालीपन की बोरियत से बचने के लिये नौकरी कर रही है.वह मस्तमौला और खुले दिमाग की माड्रन लड़्की है.पिछले सप्ताह उसने रमेश को अपने साथ सिनेमा चलने की दावत दी थी.अगर उस दिन सुनीता की बहन के यहां न जाना होता तो वह हर्गिज यह मौका न गंवाता. तभी स्फूर्ति लौट आई .रमेश ने पूछा ‘क्या हुआ मिसेज वर्मा .? वह चीख उठी‘ओह ! नो,दिस इज टू मच.आई हैव रिक्वेस्टिड यू टाइम एंड अगेन काल मी स्फूर्ति एंड नाट मिसिज वर्मा.’ ‘आई एम रियली साँरी’रमेश मिमियाया फिर पूछ्ने लगा ‘हुआ क्या ?’‘अरे यार,होना क्या था ? मुझे बिजली का बिल भरना है,आज लास्ट डेट है.अगर बिल नहीं भरा तो कनेक्शन कट जाएगा और बास कहता है कि जरूरी मीटिंग एक घंटॆ की भी छुटी नहीं मिल सकती’स्फूर्ति रूआंसी हो आई थी.रमेश ने मौका लपकते हुए कहा‘अरे यार,दोस्त किस दिन के लिये होते हैं.लाओ मुझे दो अपना बिल’और उसने अपना हाथ स्फूर्ति के कंधे पर रख दिया.स्फूर्ति ने उसका हाथ नहीं हटाया.पर्स खोलकर बिल दे दिया और बोली’मैं तुम्हें चैक देती हूं,नगदी भी मेरे बैंक से निकलवानी पड़ेगी.’ ‘ छोड़ो यार ! आ गई ना ! छोटी-छोटी बातों पर दोस्त किस दिन के लिये होते हैं.मैं यूं गया और यूं आया.पीछे से तुम सँभालना लेना.’रमेश ने आँखे नचाकर कहा और केबिन से बाहर हो गया.स्फूर्ति ने कन्धे को वहां जहां रमेश ने हाथ रखा था, ऐसे झाड़ा जैसे वहां मिट्टी लग गई हो फिर होठ बिचकाकर मुस्करा दी और बेग खोलकर लिपिस्टिक ठीक करने लगी ,उसके खुले बैग की जेब में ठुंसे नोट दिख रहे थे. रमेश आटो करके बिजली दफ्तर पहुंचा. यूं आठ सौ रुपए का बिल देखकर उसका दिल डूब गया था परन्तु उसने मन समझा लिया था कि यह एक अच्छी इन्वेस्ट्मेंट निवेश है.उसे रह-रह कर स्फूर्ति का सलोना बदन याद आरहा था आटो से उतर कर बिजली द्फ्तर पहुंचा वहां बिल भरने वालों की लम्बी लाइन देखकर परेशान हो गया.मरदों की लाइन चींटी की चाल से सरक रही थी जबकि स्त्रियों की लाइन में मात्र छ: सात महिलायें थी.तभी उसकी नजर लाइन में खड़ी अपनी बीवी पर पड़ी एक बार दिल किया कि वह बिल उसे देदे कह देगा कि बास का बिल है.मगर बिल तो केप्टन उपेन्द्र के नाम था कहीं सुनीता पूछ बैठी तो ? अभी वह सोच ही रहा था कि सुनीता ने उसे देखलिया ,वह पास आकर बोली ‘आप’?‘हाँ क्या करूं बास ने भेज दिया’? रमेश ने बिल जेब में सरकाते हुए कहा था सउनीता कहने लगी“हमारी लाइन छोटी है लाइये मैं दोनो भर देती हू ’ ‘नहीं-नहीं बिल मुझे दे दो और तुम जलदी घर जाओ.चोर-उचक्को का डर ’रमेश ने कहा. सुनीता ने बिल व पैसे रमेश को सौंपे और अनमनी सी चल दी.उसकी समझ मे रमेश का व्यवहार नहीं आरहा थाउधर रमेश एक तरफ तो जान बची और लाखों पायें दूसरी और उसे बिट्टू का मासूम चेहरा याद आ रहा था जब उसने पूछा था ’पापा चोर-उचक्का क्या होता है’.वह सोचने लगा अगर बिट्टू ने शाम को फिर यही पूछ लिया तो वह क्या जवाब देगा.
कहानी
कविता
गज़ल
दोहे
परिचय
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