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Monday, April 6, 2009

जो भी दिल्ली आता है, हो जाता चांडाल है


जो भी दिल्ली आता है, हो जाता चांडाल है

पहले भी यही हाल था
अब भी तो वही हाल है
दिल्ली में हर गीदड़
पहने शेर की खाल है

उत्तर में कश्मीर है
फूटी उसकी तक़दीर है
कहने को कुर्सी की लड़ाई है
पर आफ़त तो जनता की आई है
वहां जो बैठा अब्दुल्ला है
वो सत्ता का दुमछल्ला है
जब चिनार जलते हैं, 'डल' रोती है
उसके हाथों लंदन में विह्सकी होती है
सीधा मत समझो उसको
पूरा गुरुघंटाल है।
पहले भी यही हाल था॰॰॰॰

उसके आगे हिमाचल है
मैला उसका भी आँचल है।
जनता की कीमत वहाँ भी छद्‌दाम है
दुखी सारे लिग हैं, सुखी सुखराम है
तिहाड़ जाकर भी वो मालपुए खायेगा
तेरे नसीब में तो प्यारे, रोटी और दाल है।
पहले भी वही हाल था॰॰॰॰

उससे आगे पंजाब है
उतरी उसकी भी आब है
नेता सारे हँसते है
लहू के आँसू रोती चिनाब है
लहू सना वहाँ भी सारा गुलाल है
पहले भी यही हाल था॰॰॰॰

दूध दही जो खाणा है
देसां में देस हरयाणा है
चादर उसकी भी मैली है
हर तरफ़ दारू की थैली है
रक्तहीन जनता पीली-पीली है
नेता सारे लाल-लाल-लाल हैं
[देवीलाल-बंसीलाल-भजनलाल है]
पहले भी यही हाल था॰॰॰॰

आगे अपनी दिल्ली है
ढीली उसकी तो किल्ली है
चहुँओर पोंछा जाता बहनों का सिन्दूर है
दिल्ली में जलता रहता नेताओं का तन्दूर है [नयनासाहनी कांड]
क्या जमुना का पानी खारा है
या टेढ़ी ग्रहों की चाल है
जो भी दिल्ली आता है [नेता]
हो जाता चांडाल है
पहले भी यही हाल था॰॰॰॰

आगे अपनी यू.पी है
छाई वहां भी चुप्पी है
कल्याण मायूस है
मुलायम उदास है
दोनों के मुंह पर ताला है
दोनों जपते माला हैं
माया महा ठगिनी है,
माया जी का जंजाल है
पहले भी यही हाल था॰॰॰॰

आगे बिहारी बाबू है
साँड़ वो बेकाबू है
नाम उसका लालू है
पूरा का पूरा चालू है
अपनी पत्नी को शासन सौपा था
छुरा पीठ में जनता की घौंपा था
शरद रामविलास नितीश का जाल है
क्या जे.पी और राजेन्दर बाबू के घर
नेताओं का पड़ा अकाल है
पहले भी यही हाल था॰॰॰॰

ये जो वाम नेता हैं
ये भी दाम लेता है
इनकी अक्ल काबंद हुआ स्कूल है
इनको समझाना फ़िजूल है
नीति-वीति भाड़ में जाए
बस्स वोट का सवाल है।
पहले भी यही हाल था॰॰॰॰

पाक में रहता इक भाई है [दाऊद]
वो मुम्बई का कसाई है
आपके हाथों दर्पण है
दक्षिण के नेता भी बने वीरप्प्न हैं

मत्त कहो सरकार है
बृहन्ला की अवतार है
सोलह टांगों पर चलती है [१६ पार्टियों का समर्थन]
लेकिन टेढ़ी चाल है
पहले भी यही हाल था॰॰॰॰

रोको लिब्रेशन की आंधी को
याद करो फिर गांधी को
जब-जब गोरे आये हैं
देश हुआ कंगाल है
पहले भी यही हाल था॰॰॰॰

यूँ मन उदास है
फिर भी मुझको आस है
अच्छे दिन लौटेंगे
पूरा ही विश्वास है

नव-पीढ़ी के खून में आ रहा उबाल है
अब बदलने वाला यह हाल है।

मित्रो यह कविता देव्गौड़ा के बाद गुजराल के प्रधान मंत्री बनने के समय लिखी थी ।

तब इसके बोल थे

जैसा देवगोड़ा था वैसा ही गुजराल है

दिल्ली में हर गीदड़ पहने शेर की खाल है

अगर आज भी हमने इन छोटी क्षेत्रीय पार्टियों को नकार कर दो तथाकथित ही सही-पर राष्ट्रीय [राष्ट्रव्यापी] तो हैं ही को नहीं चुना तो गुजराल,जिसके साथ एक भी सांसद न था जैसा ही कोई by default प्रधान मंत्री बन जाएगा या देव्गौड़ा जैसा १२-१७ सांसदो वाला बनेगा-

अच्छे बुरे जैसे हों केवल कांग्रेस-भाजपा के प्रत्याशियों को वोट दें।


4 comments:

  1. क्या जमुना का पानी खारा है
    या टेढ़ी ग्रहों की चाल है
    जो भी दिल्ली आता है [नेता]
    हो जाता चांडाल है........
    मजेदार है आपकी रचना .

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  2. Shayad hamare pariwarik sanskar kaheen to chook jaate hain...hamareehi maa behnon ke jaye ye neta log hote hain..hamarehi samajki upaj....to kahin to hame apnehi girebaanme jhnkneka waqt aa gaya hai...aisa mujhe lagta hai...
    aapki harek rachna, kavy ho ya gddy ho itnee asardaar hai ki, mere jaisee adna-si wyakti uspe kya tippanee likhe?

    Aap ne jo comment diya mere lekhpe"Ye kahan aa gaye ham", uske liye tahe dilse shukrguzaaree...kya aap gar samay mile to mujhe kuchh bhashaki galtiyan bata sakten hain? Aaap seedhe blogpehi likhenge to bhi mujhe qatayi bura nahi lagega..
    Aur bada achha laga ki aapne ehsaas dilaya..maine khojneki koshish to kee par shayad pakadme nahee aayi...
    Aadarsahit

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  3. shyaam ji , namskar .
    bhut achchha likha hai aapane .
    dilli aakar sab yahi hota hai .
    mere hausalon ko or adhik udan dene ke liye aapaka shukriya .

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