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Saturday, November 21, 2009

आंसुओं में तैरते ख्वाब


मैं
रात भर

अन्धेरों को सहेजता रहा


मैं
गमों की बस्ती से
खुशियों के नाम

खत भेजता रहा


पर कोई

जवाब नहीं आया


बरस
बीतते गए
आंखें
तरस गईं


पर

आंसुओं में तैरकर

कोई
ख्वाब नहीं आया।




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तेरा सलोना बदन-है --कि है ये राग यमन -गज़लhttp://gazalkbahane.blogspot.com/

7 comments:

  1. मैं गमों की बस्ती से
    खुशियों के नाम
    खत भेजता रहा
    पर कोई
    जवाब नहीं आया
    Kyaa baat hai, sundar !

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  2. आंसुओं में तैरकर
    कोई ख्वाब नहीं आया।
    LAJWAAB RACHNA

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  3. मैं
    रात भर
    अन्धेरों को सहेजता रहा

    मैं गमों की बस्ती से
    खुशियों के नाम
    खत भेजता रहा

    in panktiyon ne man moh liya....

    bahut hi sunder aur behtareen rachna...

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  4. डॉ. श्याम जी,

    बहुत ही अच्छा प्रयोग है :-

    आंसुओं में तैरकर
    कोई ख्वाब नही आया

    एक शानदार कविता के लिये बधाईयाँ।

    सादर,


    मुकेश कुमार तिवारी

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