छ्त है
दीवारें हैं
अब घर कहां ?
घर के
बाशिन्दो के मन में
खड़ी दीवारें हैं
अब घर कहां ?
संवादो में
है मौन
शब्दों में खिचीं
तलवारें है
अब घर कहां ?
http://gazalkbahane.blogspot.com/
यहां पर पढ़ें यह गज़ल-पहले देंगे जख़्म फिर....
!!!
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हर घर का यही हाल है ! सुन्दर कविता !
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और सठिक रचना लिखा है आपने!
ReplyDeleteटूटते रिश्तों के कारण जो बिखरता जा रहा
ReplyDeleteअब बचाने को उसी घर बार की बातें करें
सही कहा श्याम जी घर छत और दीवारों से नहीं बनता उसमें रहने वाले बाशिंदों के आपसी प्यार से बनता है...बहुत अच्छी रचना...बधाई...
नीरज
छोटी मगर सारगर्भित कविता
ReplyDeleteघर है तो,
ReplyDeleteपर नहीं देता -
दिखाई!
अब घर कहाँ कितना सही और यथार्थ सवाल है ये । छोटी सी सार गर्भित कविता ।
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