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Thursday, November 5, 2009

अब घर कहां ?

छ्त है
दीवारें हैं
अब घर कहां ?

घर के
बाशिन्दो के मन में
खड़ी दीवारें हैं
अब घर कहां ?

संवादो में
है मौन
शब्दों में खिचीं
तलवारें है
अब घर कहां ?



http://gazalkbahane.blogspot.com/
यहां पर पढ़ें यह गज़ल-पहले देंगे जख़्म फिर....

6 comments:

  1. हर घर का यही हाल है ! सुन्दर कविता !

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  2. बहुत ही सुंदर और सठिक रचना लिखा है आपने!

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  3. टूटते रिश्तों के कारण जो बिखरता जा रहा
    अब बचाने को उसी घर बार की बातें करें
    सही कहा श्याम जी घर छत और दीवारों से नहीं बनता उसमें रहने वाले बाशिंदों के आपसी प्यार से बनता है...बहुत अच्छी रचना...बधाई...
    नीरज

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  4. छोटी मगर सारगर्भित कविता

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  5. घर है तो,
    पर नहीं देता -
    दिखाई!

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  6. अब घर कहाँ कितना सही और यथार्थ सवाल है ये । छोटी सी सार गर्भित कविता ।

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