मन तुलसी मीरा भया,मनवा हुआ कबीर
द्रोपदी के श्याम-सखा,पूरो म्हारो चीर
११
मनवा जब समझे नहीं,प्रीत प्रेम का राग
संबंधों घोड़े चढ़े,तभी बैरी दिमाग
१२
मन की हारे हार है,सभी रहे समझाय
समझा,समझा सब थके,मनवा समझे नाय
१३
मन की लागी आग तो ,वो ही सके बुझाय
जिसके मन् में,दोस्तो , प्रीत अगन लग जाय
१४
प्रीतम के द्वारे खड़ा,मनवा हुआ अधीर
इतनी देर लगा रहे,क्या सौतन है सीर
१५
मन औरत ,मन मरद भी,मन बालक नादान
नाहक मन के व्याकरण,ढूंढ़े सकल जहान
१७
अँगरलियां जब मन करे,महक उठे तब गात
सहवास तो है दोस्तो,बस तन की सौगात
१८
मन की मन से जब हुई,थी यारो तकरार
टूट गये रिश्ते सभी,सब् बैठे लाचार
१९
मन की राह अनेक हैं, मन के नगर हजार
मन का चालक एक है,प्यार,प्यार बस प्यार
२०
मन के भीतर बैठकर, मन की सुन नादान
मन के भीतर ही लिखे,गीता और कुरान
२१
गीत गज़ल तो हैं ‘सखा’ शब्दों के अम्बार
ढाई आखर के लिए मन तरसा हर बार।
सलोना बदन-है --कि है ये राग यमन -गज़ल
इस सप्ताह मेरी एक नई गज़ल
http://gazalkbahane.blogspot.com/
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