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Monday, June 29, 2009

छोड़ो मन-kavitaa




छोड़ो-मन
कुंठाओं को
और सो जाओ

माना
तुम्हारे पास
कहने को बहुत कुछ है
पर
किससे कहोगे?

उन
कानो से
जिन्होने कब से
तुम्हारी बातों पर
कान धरना छोड़ दिया है

उस
दिल से
किस दिल की
बात कर रहे हो तुम
जिस दिल से
बेदखल हुए
एक जमाना बीत गया है

दीवारें तुम्हारे
दर्द सुनते-सुनते
भरभरा कर ढ़ह गईं
वे जितना
सह सकती थीं
उससे अधिक सह गईम

छोड़ो मन
आशाओं को
आशाएं
बिना नेह की
बाती हैं
भभकेंगी बुझ जायेंगी

छोड़ो मन
सपनो के सपने देखना
तुम्हारी
गीली-आखोँ में
सपने धुंधला जायेंगे

त्यागो-मन
भ्रम को
उस भ्रम को
जिसके बलबूते
यह दुनिया कायम है
जिसके
सहारे ले रहे हो
तुम सांस अब तक

छोड़ो मन
इन्तजार
मृत्यु का
क्योंकि
मृत्यु का कोई भरोसा नहीं

ग़ालिब भी
तुम्हारी तरह
धोखा खाता रहा
और कहता रहा
मौत का एक
दिन मुइय्यिन है गालिब
नींद क्यों रात भर आती नहीं ?

छोड़ो मन
कुंठाओं को
पाँव-पसारो
इस संसार को
नकार कर
निश्चिंत हो जाओ

छोड़ो मन
कुंठाओं को
और सो जाओ
शायद
मीठे -सपने लौट आयें

10 comments:

  1. बहुत खुब हमेसा की तरह छा गऎ गुरु.
    महावीर बी सेमलानी
    मुम्बई टाईगर
    हे प्रभु यह तेरापन्थ

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  2. बढ़िया भावपूर्ण रचना . आभार.

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  3. बहुत सुंदर भाव, हमेश की तरह से.
    धन्यवाद

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  4. सही भावों के साथ लिखी गई रचना। अच्छी पेशकश।

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  5. hameshaa ki tarah bahut hi badhiya ..................atisundar

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  6. अत्यंत भावपूर्ण रचना
    अंतर्मन को गहराई से छूती है

    बधाई एवं शुभकामनाएं

    आज की आवाज

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  7. बहुत भावपूर्ण..समर्पण भावना के सुन्दर अभिव्यक्ति!!

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  8. आप सभी का आभार-हौसला अफ़जाई हेतु
    श्याम सखा‘श्याम’

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  9. भावपूर्ण कविता. बहुत सुंदर.
    ======
    बिना नेह की बाती है
    भभकेगी बुझ जायेगी
    वाह -- वाह

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  10. baat to sahi ki aapne...par kahin khud ko dhokhe mein rakhne ko bhi kaha..par man ki khushi ke liye khayal bura nhi hai...

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