!!!

Sunday, June 14, 2009

धरती


धरती






तितली भौंरे इस पर झूमें
रोज हवाएं इसको चूमें
चंदा इसका भाई चचेरा
बादल के घर जिसका डेरा
रोज लगाती सूरज फेरा
रात कहीं है, कहीं सवेरा
पर्वत, झील, नदी, झरने
नित पड़ते पोखर भरने
लोमड़, गीदड़ शेर-बघेरे
करते निशि-दिन यहां चुफेरे
बोझ हमारा जो है सहती
वही हमारी प्यारी धरती

5 comments:

  1. अच्छा लगा श्याम भाई। मेरी ओर से भी-

    इस धरती का मान बढ़ायें।
    पेड़ लगाकर इसे सजायें।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

    ReplyDelete
  2. यही हमारी प्यारी धरती .अच्छा लिखाहै .

    ReplyDelete
  3. आप ने चित्र ओर शव्दो से खुब सजाया इस रचना को, ओर बहुत लगी.
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  4. श्याम भाई, हमार्रे धरती को सजाने संवारने में प्रकृति की ओर से कभी कोई कोताही या सुस्ती नहीं बरती गयी. यह तो हम ही हैं जो इसे कुरूप, नाकारा, ज़हरीली बनाने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने दे रहे. जितनी सुंदर रचना है, उतनी ही बेहतर सजावट आप ने की है. सच है, खूबसूरत लोगों के सारे काम भी खूबसूरत होते हैं.

    ReplyDelete
  5. श्याम जी ,आप चाहेंगे तो हम इसका बीज आपको कुरियर से उपलब्ध करवा देंगे ,खेती की विधि भी बता देंगे ,आप घर में लगाना चाहते हैं या खेतों में ?यह तो बताएं
    वैसे ये बड़ी रंगीन कविता है

    ReplyDelete