धरती
तितली भौंरे इस पर झूमें रोज हवाएं इसको चूमें | |
चंदा इसका भाई चचेरा बादल के घर जिसका डेरा | |
रोज लगाती सूरज फेरा रात कहीं है, कहीं सवेरा | |
पर्वत, झील, नदी, झरने नित पड़ते पोखर भरने | |
लोमड़, गीदड़ शेर-बघेरे करते निशि-दिन यहां चुफेरे | |
बोझ हमारा जो है सहती वही हमारी प्यारी धरती |
अच्छा लगा श्याम भाई। मेरी ओर से भी-
ReplyDeleteइस धरती का मान बढ़ायें।
पेड़ लगाकर इसे सजायें।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
यही हमारी प्यारी धरती .अच्छा लिखाहै .
ReplyDeleteआप ने चित्र ओर शव्दो से खुब सजाया इस रचना को, ओर बहुत लगी.
ReplyDeleteधन्यवाद
श्याम भाई, हमार्रे धरती को सजाने संवारने में प्रकृति की ओर से कभी कोई कोताही या सुस्ती नहीं बरती गयी. यह तो हम ही हैं जो इसे कुरूप, नाकारा, ज़हरीली बनाने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने दे रहे. जितनी सुंदर रचना है, उतनी ही बेहतर सजावट आप ने की है. सच है, खूबसूरत लोगों के सारे काम भी खूबसूरत होते हैं.
ReplyDeleteश्याम जी ,आप चाहेंगे तो हम इसका बीज आपको कुरियर से उपलब्ध करवा देंगे ,खेती की विधि भी बता देंगे ,आप घर में लगाना चाहते हैं या खेतों में ?यह तो बताएं
ReplyDeleteवैसे ये बड़ी रंगीन कविता है