!!!
Wednesday, June 10, 2009
क्या फर्क पड़ता है ?
?
क्या
फर्क पड़ता है
मेरे
जीने या मरने से
क्योंकि
मैं ना तो
जीते जी धरती पर बोझ हूँ
ना ही
मेरे मरने से दुनिया
खाली होने वाली है
क्या फर्क पड़ता है
मेरे जीने या मरने से
हाँ कुछ अन्तर
अवश्य आएगा
उस जगह, घर या
आसपास में
जहां मैंने इस
नाकुछ जीवन
के पचास साल
गुजार दिए हैं
मेरे बिस्तर का
वह हिस्सा खाली हो जाएगा
जहाँ मैं सोता हूँ
और मेरी पत्नी
कहलाने वाली औरत
को अकेले सोना पड़ेगा
क्येांकि वह
एक घरेलू भारतीय
महिला है
तथा जवान होते
बच्चों की माँ है,
कोई और
विकल्प भी तो नहीं हैं
उसके पास।
मेरे बेटे के
पास आ जाएगा अधिकार
मेरी जमा पूँजी को
अपने हिसाब से खर्च करने
का
इसलिए उसके आँसू
उसका ग+म
पत्नी के ग+म की तुलना में
क्षणिक होगा
मेरे दफ्तर की कुर्सी भी
एक दिन
के लिए
खाली हो जाएगी
फिर काबिज
हो जाएगा उस पर
बाबू राम भरोसे
बहुत दिन
से प्रतीक्षा में है
बेचारा
मेरी पुरानी साइकिल
को ले जाएगा कबाड़ी
क्योंकि
वह नहीं रह जाएगी
पहले भी कब थी ?
इस घर के लायक।
अलबत्ता
‘बुश’ मेरा कुत्ता
शायद ‘मिस’ करेगा
सुबह सुबह
मेरे साथ टहलना।
क्योंकि कोई और उसे
बाहर नहीं ले
जाता अल सुबह ;
पर शायद
उसके बरामदे का फर्श
खराब करने की आदत
से तंग आकर
पत्नी संभाल लेगी ;
यह काम भी,
और बुश भी
भूल जाएगा
मेरा दुलारना डाँटना दोनों
क्या फर्क
पड़ता है
मेरे जीने से
या मरने से
जीते जी मैं बोझ नहीं हूँ
धरती पर
और मेरे मरने से
दुनिया नहीं है
खाली होने वाली
[अल सुबह चार बजकर पचास मिनट]
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भाई आप बहुत निराश लग रहे है कविता से. महाराज कृषन जैन से आपकी चर्चा हुआ करती थी
ReplyDeletekyo itana nirash hai ......
ReplyDeleteश्याम सखा 'श्याम' जी।
ReplyDeleteचित्र-गीत बढ़िया हे।
बधाई।
aadarniya shyaam ji
ReplyDeletebahut der se aapki kavita ko pad raha hoon ..is kavita ko padhkar dil ek alag se ahsaas me chala gaya .. main kya kahun ...
nishabd hoon .
dhanywad.
vijay
pls read my new poem :
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
rachna psnd aayee ,bdhai .
ReplyDeleteaapne to haqeekat bayan kar di......atal satya hai ye ki duniya ko koi fark nhi padta koi agar jinda hai to aur kal ko mar jaye to bhi
ReplyDeletesirf ek din ka rona hai uske baad sab apne apne jeevan mein vyast ho jate hain.
koi fark nhi padta duniya ko
koi jiye ya mare
kyunki
duniya par hum na to bojh hain
aur na hi uski jaroorat