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Wednesday, February 24, 2010

सूरज के घर का रास्ता-

दिन
अजनबी सा उगा
सुबह ने
अंगड़ाई लेकर
दोपहर को
बुलावा भेजा
दोनो सहेलियां
बैठकर
शाम की
बुराई करने लगीं
शाम बेचारी
बूढी सास सी
बहरी बनी सुनती रही
 और सूरज भगवान से
मौत की दुआ
मांगने लगी
सब भगवानो की मानिन्द
सूरज दयालु था
उसने अपने डैने
समेटे और
उड़ गया
सुबह और दोपहर
ने काम निबटाया
और ख्वाबों की
आगोश में समा  गईं
शाम तारों के मनके
गिनती
चांद से
सूरज के घर का
रास्ता पूछती-पूछती जागती रही




























हर सप्ताह मेरी एक नई गज़ल व एक फ़ुटकर शे‘र हेतु
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