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Friday, August 21, 2009

अन्धेरे का दर्द-कविता श्याम सखा


रात है
अन्धेरा है
अन्धेरा जाग रहा है
अपने आप से भाग रहा है
मैं
उसे पकड़ता हूं
वह बार बार हाथों से फिसलता है
पर नहीं
आवागमन से निकलता है
रात है
अन्धेरा है
मुझे
हर तरफ से
अजीब विचारों ने घेरा है
विचार
दीवारों से सर टकराते हैं
दरवाजे
को या तो बंद पाते हैं
या फिर
दरवाजा सिकुड़ कर ताख बन जाता है
बहुत कोशिश करता है रोकने की
पर बाहर का
अन्धेरा
भीतर छन आता है
रात है
अन्धेरा है इसलिए
खिड़कियां नाराज हैं
लड़कियों की हास्टल वार्डन सी
सख्त मिजाज है
विचारों को
आजादी ही देती
विचार
अलमारियों में घुसना
चाहते हैं
पर वहां तो पहले से
सदियों पुराने विचार भरे हैं
मुझे से एक आध
पीढ़ी पुराने
विचार
अपनी बारी
आने की प्रतीक्षा में
चुपचाप खड़े हैं
मैं
यानि मेरे विचार
उनके पूछता हूं
कि
वे कबसे यहां खड़े हैं
पर वे
अपनी चुप्पी तोड़ने पर अड़े हैं
अब मेरे
विचार सोचते हैं
हालांकि सोचना मना है
कि
क्या वे भी पक्ंित में खड़े हो जाएं
रहे
जिंदा वक्त में जड़े हो जाएं
बड़ी
अजीब समस्या है
समाधान नहीं है
विचार हैं
उड़ना चाहते हैं
पर उड़ान नहीं है
सदियों से उड़ते आए हैं
कफस में कभी रहे नहीं
पर आज
बेपर है
भूतकाल है
पर
भविष्य नहीं है
वर्तमान नहीं है
अजीब समस्या है
समाधान नहीं है
इसलिए विचार बार बार
छत से लगे मकड़ी के जाले को निहारते हैं
तो
जी पा रहे हैं
जाले में फंस कर जीवन को नकारते हैं

विचार
आखिर विचार हैं
कोई आदम की औलाद नहीं
कि मायूस हो जाएं
खा लें
नींद की कुछ अधिक गोलियां
और हमेशा के लिए सो जाए
इन कंकरीटी जंगलों में
चूहों के बिल भी तो नहीं हैं
कि उनमें घुस जाएं
मेरी रात के पास
मेरे
अन्धेरे के पास पहले था
अब कोई दिल नहीं है
दिल था
तो बचपन की याद करता था
कभी हंसता था
कभी रोता था
कभी मचलता था
पर लोरी सुनकर सो जाता था
इस तरह
किस्सा तमाम हो जाता था
पर
अब तो
अजीब बात है
जागना
तमाम रात है
निहत्थे ही
अन्धेरों से लड़ना है
रात है
अन्धेरा है
अन्धेरा जगा है
मेरा सगा है।


17जनवरी1992/12.15 रात्रि
मित्रो जनवरी कि इस तन्हा सर्द रात में अन्धेरे पर आधारित यह कविता पूरी होते ही मन के इसी माहौल में -दूसरी कविता उपजी कबीर-गालिब और अन्धेरा /मैं उसे भी पोस्ट करना चाहता था लेकिननेट पर लोग उतावली में रहते हैं इसलिये उसे अगले सप्ताह पोस्ट करूंगा
आपका सदा सा
श्याम सखा श्याम

7 comments:

  1. इस गवेषणात्मक अभिव्यक्ति के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई।
    गद्य-गीत भाव प्रधान तो है ही, साथ ही आशा का भी संचार करता है।

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  2. बहुत ही खुबसूरत रचना .........हमेशा से ही मै आपके रचनाये मुझे बहुत ही पसन्द आती है ..........एक बेहद खुबसूरत रचना

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  3. अपनी इस रचना में आपने बड़े अनूठे बिम्बों को प्रयुक्त किया है.....गहन चिंतन,सुन्दर अभिव्यक्ति....

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  4. बहुत खूबसूरत गहरे भाव और संवेदनायें लिये है बहुत बहुत बधाई

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  5. bahut hi gahre bhav liye hai aapki rachna.........badhayi.

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  6. जागना तमाम रात है , निहथ्थे ही अंधेरों से लड़ना है ...सच ही तो कहा है ...अंधेरों से लड़ने में ही हमरी उम्र बीत जाती है ...

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  7. wonderful!
    A pricious piece of modern poem.

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