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Wednesday, July 1, 2009

सुनो हवा कुछ कह रही है-kavita


सुनो हवा कुछ कह रही है


हवा कह रही है
रोशनियां गुल कर दो
क्यों ?
क्योंकि इन की
चौंधियाती चमक
बच्चों को रूबरू नहीं होने देती चांद- सितारों से
और अगर
तुम्हें इतना ही घमंड है
अपनी नियोन-लाइटों का
तो उनसे कहो
सूरज से करें मुकाबला
मत करो कोशिश
नन्दन वन में कुकमुत्ते उगाने की
कहीं एक दिन तुम्हारे भीतर
सिर्फ़ कांटे ही रह जाएं
खिड़किया खुली रहने दो
तुम्हारी वातानुकूलित हवा मुझे मुर्दा लगती है
जब कि खुली खिड़कियों
से आती हवा गर्म तो जरूर है
मगर उसमें
गंध है दुधमुहे-बछड़े की
उपले थाप रही मां के आंचल की
माने उसमें
गंध है जीवन की
अपने यांत्रिक जंजाल से
बाहर निकल कर देखो
गलियों में बच्चे अब भी खेलेते हैं नंग-धड़ग
माना वे तुम्हारे स्टेट-ऑफ़ थी आर्ट बच्चों सरीखे नहीं हैं
पर बच्चों पर क्या किसी ब्रांड की मोहर होनी चाहिये
बाहर आकर देखो
सड़क पर चल रहे अधिकांश लोग
अभी भी शरीफ़ हैं
कुदाल उठाए किसान
हथौड़ा थामे मजदूर
बर्तन मांजने जाती बसन्ती
साइकल की घंटी बजाता डाकिया
ये लोग लुटेरे या अपहरण-कर्ता नहीं हैं
अपहरण-कर्ता तो तुम्हारी तरह कारों में आते है
और लुटेरे झंडी लगी बडी कारों में
देखो
सूरज और चांद अभी
किसी साहूकार की तिजौरी में कैद नही हैं
शहर की गलियों से बाहर निकलो
देखो पगडंडियों पर अब भी हवा का राज
धूल की खिड़की खुली है
वहां की हवा में अभीलेडनहीं घुली है
पर वहां
अपनी पोलिशन रहित सर्टिफ़िकेट वाली कार मत ले जाना
क्योंकि तब तो वे जंगली फ़ूल मुर्झा जाएंगे
हर-सिंगार को काला मत करना
पीपल को देखना मस्त बयार में
पागलों की तरह झूमते
तुम भी सब कुछ भूल झूम उठोगे
रोशनियां गुल कर दो
चांद को निहारो
सितारों को गिनो
इन्ही सितारों में तुम्हारा बचपन छुपा है
यहीं -कहीं आंख मिचौनी कर रही है
तुम्हारी जवानी
सुनो हवा कह रही है
तुम्हारी पहली-पहली प्रेम कहानी
१३/३/९५/१बजे रात

9 comments:

  1. ek mitti ki soundhi soudhi khushboo ke sath .............bahut hi sundar .........hamesha ki tarah laazbaaw

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  2. एक सुंदर रचना

    धन्यवाद

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  3. khoobsoorat rachna........jeevan ke har pahlu ko choo gayi.

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  4. CHILDHOOD MEMORIES
    BY DR. RAM SHARMA
    C-26, SHRADHAPURI PHASE2, KANKERKHERA, MEERUT, U.P., INDIA-250001
    I still remember my childhood,
    Love, affection and chide of my mother,
    Weeping in a false manner,
    Playing in the moonlight,
    Struggles with cousins and companions,
    Psuedo-chide of my father,
    I still have everything with me,
    But i miss,
    Those childhood memories

    2 OCTOPUS
    Man has become octopus,
    entangled in his own clutches,
    fallen from sky to earth,
    new foundation was made,
    of rituals, customs and manners,
    tried to come out of the clutches,
    but not
    waiting for doom`s day

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  5. MOTHER
    A POEM BY DR. RAM SHARMA
    Delicacy like flowers,
    Resistance like a mountain,
    Affectionate like earth,
    Sacrifices like Devi Sita,
    You have mother,
    Coldness like moon,
    Sweet voice like honey,
    Politeness like a tree,
    You have mother,
    I salute you mother

    DR. RAM SHARMA IS SENIOR LECTURER IN ENGLISH IN JANTA VEDIC COLLEGE, BARAUT, BAGHPAT, U.P., INDIA

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