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Friday, July 17, 2009
देह तो मात्र जवान गठीली, उत्तेजक माशपेशियाँ तथा गोलाईयाँ हैं
जैसे-तैसे कट रही जिन्दगी।
पहले हम
सरदारों, नवाबों,
राजाओं के गुलाम थे
फिर संतरियों
तथा मंत्रियों के
गुलाम बने
अब हम
पदार्थोन्मुखी हैं
यानी
बाजार के
विज्ञापन के गुलाम हैं
गुलाम हैं
साबुन, तेल, टी.वी.
स्टीरियों, कार,
कम्प्यूटर बेचती
नंगी मादा देह के
इस मादा देह का
अवगुठन नहीं,
मात्र नाम बदलते हैं।
देह तो मात्र
जवान गठीली,
उत्तेजक माशपेशियाँ तथा गोलाईयाँ हैं
हाँ इनके
नाम बदलते रहते हैं
जैसे
ऐश्वर्य, सुष्मिता, लारा दत्ता,
करिश्मा या करीना कपूर
अक्षय, अजेय यौवन के ख्वाब बेचते
पच्चीस साल के बुड्ढे, या साठ साल के जवान के
या फिर अन्दर का मामला है
का गोविंदा
या के.बी.सी. को लॉक करने वाला
बुढ़ाता निरीह अमिताभ
जिसपर तरस खाकर
हम खरीदते हैं हिमानी तेल
हालाँकि मालिश के लिए
न हमारे पास वक्त है
न ही सिर
कबन्धों के पास कभी सिर हुआ है?
जो हमारे पास होता।
उसके धमकाने पर
हम पहुँच जाते है अस्पताल
अपने शिशुओं को
पोलियों ड्राप्स दिलवाने
बस इसी तरह
गुलामी में कटे हैं
हमारे पूर्व जन्म
और
कट रही है यह उम्र भी
जैसे
तैसे
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बढिया कटाक्ष
ReplyDeleteबस इसी तरह
ReplyDeleteगुलामी में कटे हैं
हमारे पूर्व जन्म
और
कट रही है यह उम्र भी
जैसे
तैसे
सत्य वचन...
यहाँ यथार्थ उकेर दिया आपने..यही सही है:
ReplyDeleteबस इसी तरह
गुलामी में कटे हैं
हमारे पूर्व जन्म
और
कट रही है यह उम्र भी
जैसे
तैसे
आप की सोच का तो मै कायल हूँ श्याम जी....बहुत ही सटिक है .....अतिसुन्दर ....ऐसे ही लिखते रहे ....सही मुद्दो पर आवाज़ बुलन्द करते रहे
ReplyDeletebahut hi badhiya vyangya..........gazab
ReplyDeleteइस मादा देह का
ReplyDeleteअवगुठन नही
मात्र नाम बदलते है
====
मार्मिक सत्य सोच को उकेरती अद्भुत व्यंग्य रचना
steek vygy .bajar vad hmari nas nas me basa diya hai .jaise rakhi ka svymvar bajarvad ki atiranjna
ReplyDeleteकविता की तीव्र संवेदना छू रही है मन को । कुछ उत्तेजना सी महसूस कर रहा हूँ । कविता का आभार ।
ReplyDeleteसत्य है--पर मैने आपसे और अच्छी कविता की उम्मीद लगा रक्खी थी....
ReplyDeleteदेवेन्द्र पाण्डेय
GAZAB................yadi kahen to atishyokti nahin hogi GAZZZZZZZZZZZZZZZZZZZAB.
ReplyDeleteऔर
ReplyDeleteकट रही है यह उम्र भी
जैसे
तैसे ..........
bahut khoob.
लाजवाब रचना...आज के हालात की बखिया उधेड़ती...वाह.
ReplyDeleteनीरज
आपका स्वागत है, लिखते रहिये, लिखने से मन को शकून मिलता है. अपने विचारों की अभिव्यक्ति को ही कविता कहते हैं. अच्छा लगा आपसे संबोधित होकर.
ReplyDeleteशुभ यात्रा.
आपने इतना सुंदर रचना लिखा है कि कहने के लिए अल्फाज़ कम पर गए!
ReplyDeleteAchchhee bhaavukataa poorn kavitaa ,sabhee likhrahe hain aajkal,Par is gulaamee kee vazah kyaa hai,kaun hai?--ham swayam, hamaaree sukha suvidhaa poorn jeevan kee ichchhaayen,na ki koee aur,kuchh samaadhaan bhee to likhen Huzoor.
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