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Saturday, July 25, 2009

राह मिल्यो वो छैल छबीलो


जब तैं प्रीत श्याम सौं कीनी
तब तैं मीरां भई बांवरी,प्रेम रंग रस भीनी
तन इकतारा,मन मृदंग पै,ध्यान ताल धर दीनी

अघ औगुण सब भये पराये भांग श्याम की पीनी

राह मिल्यो वो छैल-छ्बीलो,पकड़ कलाई लीनी

मोंसो कहत री मस्त गुजरिया तू तो कला प्रवीनी

लगन लगी नन्दलाल तौं सांची हम कह दीनी
जनम-जनम की पाप चुनरिया,नाम सुमर धोय लीनी

सिमरत श्याम नाम थी सोई,जगी तैं नई नवीनी

जब तैं प्रीत श्याम तैं कीनी

6 comments:

  1. मीरा बाई की इस पद रचना को पढ़वाने के लिए धन्यवाद।

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  2. अति उत्तम
    बेहद खूबसूरत

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  3. रघव जी मेरे ब्लाग http://katha-kavita.blogspt.com/ पर टिपण्णी हेतु आभार लेकिन विनम्रता से अर्ज करना चाहूंगा कि वह पद मां सरस्वती की कृपा से मेरे द्वारा लिखा गया है मीरा बाई का नहीं है .हां लेकिन आपने इस पद को ऐसा समझा यह मेरी रचना का सौभाग्य है
    श्याम सखा श्याम
    मेरा एक और ब्लाग है

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  4. shyam rang mein bheegi rachna sach mein shyam rang mein duba gayi.

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  5. श्याम जी, राज भाटिया जी अपनी माता जी के देहावसान के कारण इन्डिया आए हुए हैं। आज जब वो उनकी अस्थियॉ लेकर ब्यास जा रहे थे तो यहाँ लुधियाना में उनसे कुछ पल के लिए मुलाकात हुई थी। उन्होने ही यह संदेश आपको देने को बोला था कि आप उनसे फोन पर सम्पर्क कर लें। उनका फोन न:- 09992313988 है।
    आपकी ईमेल आईडी उपलब्ध न होने के कारण ही यहाँ टिप्पणी के जरिए बताना पडा।
    धन्यवाद।

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