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Saturday, July 11, 2009

नपुंसक- दर्द


एक दिन

मेरे
सारे दर्द



इकट
ठे होकर
मेरे पास आए

मैं
घबरा गया
जैसे
कारखाने का मालिक
मजदूर यूनियन
के नुमाइंदे
को देखकर
घबरा जाता है
दु:खों
ने मेरे दिल के
दरवाजे पर
दस्तक दी

मैं

और घबरा गया

क्योंकि
कुछ दिनों से
मेरे दिल में

एक
पराई खुशी
रहने लगी थी

अगर
मेरे दर्दों ने
उसे देख लिया
तो
मेरा दिल
और खुशी

दोनों
बदनाम हो जाएंगे
क्योंकि

इन दोनों
का
रिश्ता अभी नाजायज था

खुशी
डर से
कांपने लगी

जैसे
कोई
क्वारी लड़की
किसी अनजाने लड़के
के साथ
कमरे में

अकेली पाए जाने पर

और किसी
जान पहचान वाले
के आ जाने पर
कांपती है
उसने
कुनमुनाती आवाज
में
मुझसे पूछा
अब
क्या होगा?
मैं अब तक

कुछ
सम्भल चुका था
बोला
कुछ नहीं होगा
और
हुआ भी तो
क्या होगा-होगा
बस
एक और दर्द
दिल के
दरवाजे पर
लगातार
दस्तकें पड़ रही थीं
मैं और खुशी
सहमे बैठे थे
बाहर दर्द हमें घेरे खड़े थे

और
भीतर
एक और दर्द पैदा हो चुका था

मैंने दरवाजा थोड़ा सा खोला

और
नए जन्में
दर्द
को बाहर निकाल दिया
बाहर खड़े
दर्दों ने
उसे लपक लिया

और
जश्न मनाने लगे
जैसे हिजड़े

एक और नपंुसक के

पैदा होने
पर जश्न मना रहे हों।
खुशी

अपने घुटनों में
मुंह दिए
सुबक रही थी

और
मैं
किंकृत्व्य विमूढ सा
एक
कोने में खड़ा
अपनी नपुंसकता
पर
खिसियानी हंसी -हंसता
और
थोथे ज्ञान से
अपने को बहका रहा था

कि
होनी भला किसके वश में है ?

14 comments:

  1. gahri soch........
    gahri kavita
    ____badhaai !

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  2. डॉ. श्याम सखा जी,

    दर्द की उत्पत्ति, खुशी की बेबसी और अपनी नपुसंकता पर दर्द का जन्म, वाह।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  3. बहुत कुछ कह गयी कविता...................भाव कही गहरे बैठे है ..............जो बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करते है............

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  4. इतनी गहरी सोच को सलाम

    बहुत खूबसूरत

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  5. बहुत ही सुंदर ओर गहरे भाव ओर सोच लिये है आप की यह कविता.
    धन्यवाद

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  6. बड़ा गहरा उतर गई रचना...बधाई!

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  7. मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! अब तो मैं आपका फोल्लोवेर बन गई हूँ इसलिए आती रहूंगी! बहुत ख़ूबसूरत और गहरी सोच के साथ आपकी लिखी हुई ये रचना काबिले तारीफ है!
    मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!

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  8. दर्द ने जब भी जन्म लिया है ख़ुशी को सुबकना पड़ा है,
    बिलकुल अलग सी सोच, लेकिन सोचने को मजबूर करती हुई कविता..
    मुझे बहुत ही ज्यादा पसंद आई आपकी यह कविता भी हमेशा की तरह..
    एक नायाब सत्य का सृजन हुआ है आपके हाथों..

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  9. ख़ुशी का दर्द अन्दर तक महसूस किया और दर्दो की ख़ुशी अक और नया दर्द दे गई .

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  10. सोचने को मजबूर करती है आपकी रचना...... सच कहा होनी किसी के वश में नहीं......और दर्द की utpatti और ख़ुशी का sahma pan ......... gahri abhivyakti है .......

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  11. बहुत ही सुंदर ओर गहरे भाव

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