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Friday, July 3, 2009

भूख ने रोजे रख लिए-कविता-श्यामसखा




भूख ने रोजे रख लिए



वक्त तब
सब
पर
मेहरबान
था
भूख
और रोटी
का
इश्क चढ़ा परवान था
भूख
को
अपनी
मेहनत
और
रोटी को
अपनी
महक का सरूर था

भूख
और रोटी को
एक
-दूजे के
प्यार
का गरूर था
भूख
रोज
अल
सुबह उठता
रोटी
को चूमता
कुदाल
लिए झूमता
खेत
चला जाता
दिन
भर पसीना बहाता
धरती
परती करता
खेत
ही नहीं खलिहान भी भरता

दिया जले
सांझ
ढले
घर
लौटता
रोटी
बनी ठीनी-सी
महकी
उदराई सी
सजी
सजाई सी
उसका
इन्तजार करती
भूख उसे बाहों में थाम लेती
रोटी

तब
बिकती नहीं थी
कच्ची रहती थी
जली
सी सिकती थी

फिर
जाने
कहां
से धर्म आया
राम
जाने उसने
भूख को
क्या सिखाया
भूख ने रोजे रख लिए
बोला

बस
तौबा
बहुत
स्वाद चख लिए
अब
परलोक सुधारूंगा
जिन्दगी
धर्म पर वारूंगा
रोटी
ने सुना तो
भागी
आई
आंसू
बहाए गिड़गिड़ाई
याद
दिलाए
कसमें
-वायदे
प्रीत
की रस्में-कायदे
पर भूख
टस
से मस हुआ
रोटी
का
उस
पर बस हुआ
अब
रोटी
सिर्फ
रोती थी
अपनी
आब खोती थी
बूढी औरत की
सफेद
लटों सी फफूंद ने
उसे
घेर लिया
रोटी ने भी
जमाने
से मुंह फेर लिया
वह भुरी
भुरती
गई
और खत्म हो गई
भूख
को अब भान हुआ
उसके
हाथों रोटी का अपमान हुआ
उसने
ढूंढा रोटी
यहां
थी वहां थी
पर
रोटी अब कहां थी?
अब
भरपेट लोग
रोटी
खरीदते हैं खाते हैं
डकार
लेते हैं गुनगुनाते हैं
भूख
खाली
पेट सोती है
सिर
धुनती है,
धर्म
को रोती है।
21/10/91 सांय-५.३३

10 comments:

  1. बहुत बढिया....तारीफ के लिए शब्द नहीं मिल रहे...

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  2. बहुत शानदार रचना लिखी है आपने।

    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  3. शानदार रचना । धन्यवाद ।

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  4. भूख और रोटी को
    एक-दूजे के
    प्यार का गरूर था
    बहुत सुंदर रचना
    धन्यवाद

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  5. श्याम भाई जी ,
    कविता के माध्यम से आपने अपने व्यक्तित्व का और सोच का परिचय दिया है कविता में कवि का कवित्व झलकता है.बहुत भावपूर्ण बधाई !!

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  6. सुंदर रचना , धन्यवाद .

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  7. भूख
    खाली पेट सोती है
    सिर धुनती है,
    धर्म को रोती है

    सत्य है और सुन्दर रचना है।

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  8. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति...
    बधाई..

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