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Thursday, July 2, 2009

खत


खत





भोर के
माथे पर लिखा
हवा के हाथ भेजा
तेरा खत मिला
दूर हो गया
बहुत दिनों का गिला
शुरू हो गया फिर से
टूटती सांसों का सिलसिला।

11 comments:

  1. bबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है आभार्

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  2. बहुत सुन्दर लिखा है.
    माथे पर खत लिखा ==
    वाह क्या कल्पना है

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  3. bahut hi badhiya.................kam shabdo bahut gahari baat

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  4. अद्भुत पंक्तियाँ...वाह.
    नीरज

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  5. दूर हो गया
    बहुत दिनों का गिला
    शुरू हो गया फिर से
    टूटती सांसों का सिलसिला।
    बहुत सुंदर, जबाब नही जी
    धन्यवाद

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  6. बाकी सब तो बहुत सुन्दर पर टूटती "सांसों का सिलसिला" का क्या चक्कर है। चित्र खूब चुना।

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  7. kam shabdo mein bahut kuch keh diya aapne...:):)

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  8. दूर हो गया
    बहुत दिनों का गिला
    शुरू हो गया फिर से
    टूटती साँसों का सिलसिला

    क्या बात है...,
    ज़बरदस्त..

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