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Thursday, March 10, 2011

घर तेरा है या है मेरा-----gazal महिला दिवस पर विशेष

कहने को हम दुनिया आधी
फ़िर भी हैं मर्दों की बांदी

गहने जेवर की सूरत में
बेड़ी ही हमको पहना दी

बिट्या रानी घर की शोभा
कहकर कीमत खूब चुका दी

डोली उठी पिता के घर से
पी के घर में चिता सजा दी

घर की साज-संवार करें हम
इतनी सी बस है आजादी
जन्म दिया आदम को हमने
जनम-जनम की हम अपराधी

बात बड़ी है सीधी सादी
औरत होना है बरबादी

घर तेरा है या है मेरा
असली बात यही बुनियादी

आधा हक ले के है रहना
बात आज तुम्हें यूं समझादी

अनाम को-‘बेरदीफ़ मुस्लसल’गज़ल गज़ल
वज्न-फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन-काफ़िया ‘ई




हर सप्ताह मेरी एक नई गज़ल व एक फ़ुटकर शे‘र हेतु http://gazalkbahane.blogspot.com/

3 comments:

  1. बहुत खूब! बहुत मार्मिक सुन्दर रचना..

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  2. आप ग़ज़ल तख्ती कर के समझते हैं बहोत अच्छा लगा /गज़लें बहोत अच्छी हैं /ranjan azar

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