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Saturday, February 27, 2010

जो बात है तेरी आंखो में कहां वो किसी बन्दूक की गोली में

 करता हूं  हर साल
तेरा इन्तजार होली में






तू आए तो मने दीवाली
मेरे दिल की खोली में












और फ़िर ऐ जानेमन
आए मुन्ना या मुन्नी
हर साल तेरी झोली में







 जो बात है तेरी आंखो में
कहां वो किसी बन्दूक की गोली में








राधा का श्याम है वो तो-मीरा का श्याम है
गोपियों मे मिल जाएगी इक आध मुझे भी
यह सोच के बना था  मैं ‘श्याम सखा’ ग्वाल टोली में







पर मीरां राधा ही नही
फ़िदा थीं सब गोपियां श्याम पर
नहीं टपका कोई हसीन आम मेरी झोली में








बुरा न माने कोई गोपी
और ‘श्याम’ जी आप भी
मुझको चढी है इस बार भी भांग होली में







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यही तो होली की मस्ती है

हर सप्ताह मेरी एक नई गज़ल व एक फ़ुटकर शे‘र हेतु
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Wednesday, February 24, 2010

सूरज के घर का रास्ता-

दिन
अजनबी सा उगा
सुबह ने
अंगड़ाई लेकर
दोपहर को
बुलावा भेजा
दोनो सहेलियां
बैठकर
शाम की
बुराई करने लगीं
शाम बेचारी
बूढी सास सी
बहरी बनी सुनती रही
 और सूरज भगवान से
मौत की दुआ
मांगने लगी
सब भगवानो की मानिन्द
सूरज दयालु था
उसने अपने डैने
समेटे और
उड़ गया
सुबह और दोपहर
ने काम निबटाया
और ख्वाबों की
आगोश में समा  गईं
शाम तारों के मनके
गिनती
चांद से
सूरज के घर का
रास्ता पूछती-पूछती जागती रही




























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Sunday, February 21, 2010

तुम गईं

 तुम
गईं
बन
दुल्हन
नईं,
व्यथा
बीते
दिनों
की
मैने
सही
                                       कब
                                       किससे
                                       कही.








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Friday, February 19, 2010

कल्चर नहीं एग्रीकल्चर

हाँ
कला,संस्कृति
कल्चर के
नाम पर
हमारे पास थे
सिर्फ़
हल बैल
धरती फ़ावड़े
कुदाल बीज खरपतवार
इसीलिये
आप कहते हैं
हमारे पास
कल्चर के नाम पर
है सिर्फ़ एग्रीकल्चर
हम इन
तथ्यों को
जो आप बार-बार
गाली की तरह
फ़ेंक देते हैं
हमारी निरीह पसीने
में गंधाती देहों पर
हाँ
हम इन
तथ्यों को
नहीं नकारते
पर एक सवाल
बकौल आपकेहमारे कुंद जहन में
यह सवाल
बवंडर सा उठता है
अगर आप
कृपा करें
तो हम पूछ लें
आपसे श्रीमान्‌ !
कुरूक्षेत्र को झेला हमने
अठारह अक्षोहणि
सेनाओं का रक्त
बहता है
हमारी अनकल्चर्ड धमनियों में
आज भी
गूंजता हैं मराठों,तुर्को,सिखों
राजपूतो की खड्ग तलवारों की
झनझनाहट
का शोर
पानीपत की धरती पर
तैरती गर्म हवाओं में

अनेक
वीरों
के साथ दफ़न हैं
अनेकानेक
निरीह काश्तकारों के शव
हम खेत
होते रहे
हमेशा-हमेशा से
कभी इन्द्र-प्रस्थ
कभी दिल्ली को
बचाने की खातिर
और चलाते रहे हल कुदाल
फ़ावड़े
जिससे भरे पेट
आप श्रीमान का
और ले सकें
आप आनन्द
ठुमरी गजल
या ध्रुपद का

शायद
आप भी एक शास्वत सच
जानते हैं
भूखे भजन न होहिं गोपाला
कभी पढें
आप हमें भी
और जब पढें
तो दिल से पढें
हमारे दुख
हमारी पीड़ा
और सुने हमारी
छाती से उठते उन्मुक्त ठहाके
उन ठहाकों से ही
तो निकलते हैं
ध्रुपद-और ठुमरी
हम हैं हरियाणा के
स्वाभिमानी
किसान
हम जमीन से जुड़े हैं
अक्खड़ नहीं हैं हम























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मुखौटे और यथार्थ



प्यार को
मुखौटे मत पहनाओ
मानता हूँ
सभी मुखौटे
बुरे नहीं होते
कुछ तो
यथार्थ से भी सुन्दर होते हैं

पर मुखौटे
मुखौटे हैं
यथार्थ नहीं
बुरा या भला
मुखौटा
यथार्थ को ढक लेता है
अपनी अच्छाई या बुराई से
यथार्थ
को यथार्थ रहने दो
मत
औढ़ाओ उसे
अच्छाई या बुराई ।

प्यार भी
सिर्फ प्यार रहे
न अच्छा
न बुरा-प्यार बस प्यार
न हो
वह देह
न हो देह व्यापार
17ण्2ण्96



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Tuesday, February 9, 2010

बीमार कर सकती है टिप्पणी--सावधान हो जाएं

ब्लॉगिंग खुद को अभिव्यक्त करने का अच्छा साधन है
लेकिन हिदुस्तानी आदमी ने इसे टिप्पणीयों का साधन बना लिया है
और इसके कुपरिणाम भी आरम्भ हो गये हैं
मैं चिकित्सक हूं और मैने पाया है कि जो लोग टिप्पणी पाने के लिये टिप्पणी करने में जुटे हैं वे न केवल सार्थक अभिव्यक्ति से दूर हो रहे हैं-सार्थक पोस्ट न पढकर केवल टिपियाने में वक्त खराब कर रहे हैं ये लोग बिना पोस्ट पढे टिप्प्णी करते हैं और एवज में ऐसी ही टिप्पणी पाते हैं ,इसका उदाहरण आप एक विगेट से जो यह दर्शाता है कि आपके ब्लॉग पर लोग average वक्त कितना बिता रहे हैं इससे लग जाता है।
टिप्पणी ले दे के नुकसान अब स्वास्थ्य पर भी दिखने लगे हैं

जो लोग लाइफ़ स्टाइल बिमारियों से पीड़ीत हैं जैसे ब्लडप्रेशर,मधुमेह,अस्थमा,पेप्टिक अल्सर,अनिद्रा ,एन्गजाइटी.अवसाद या डिप्रेशन जैसे मानसिक रोग उनकी बिमारियां बढ जाती हैं .
पहले से अधिक दवा लेनी पड़ रही है,
अत: आप को आगाह किया जा रहा है टिपियाने को बिमारी न बना कर इसे भी सार्थक अभिव्यक्ति का साधन ही बनाए

इस बिमारी के लक्षण

१ पोस्ट करने के तुरन्त बाद भाग-भाग कर ब्लॉग पर आना कि कितनी टिप्पणी आईं
२-किसी खास व्यक्ति की टिप्पणी न आने पर उदास हो जाना-ऐसे समय मे आपका ब्लड प्रेशर बढ़ा मिलेगा
३किसी पोस्ट पर कम टिप्पणी आने पर उदास व चिड़्चिड़ा हो जाना
४-मनपसन्द टिप्पणी न आने पर उदासी चिड़चिड़ापन
-नेगेटिव टिप्पणी आने पर गुस्सा होना
६-किसी ने आपकी रचना की कमी बतला दी तो पहले नाराज होना,फ़िर या तो उसके ब्लॉग जो आपका पसन्ददीदा ब्लॉग रहा था जाना छोड़ देना या जाना पढ़ना मगर टिप्पणी न करना-यह भी अपने आप में एक हीनभावना से ग्रस्त होना ही है जो आगे चलकरमानसिक अवसाद रोग का कारण बनेगा-अच्छी रचना पर कंजूसी न करें खुलकर टिप्पणी करें
इस रोग का सबसे भयंकर लक्षण है अनाम anonimous बनकर चुभती टिप्पणी करना-इससे जहां एक और टिप्पणी पाने वाले को अवसाद ग्रस्त कर रहे हैं ,वही आप खुद को मानसिक अवसाद की ओर धकेल रहे हैं
आप तो इस तरह गलत तरीके से टिप्पणी के व्यसन addiction से बचे और कुंठाग्रस्त होने से बचें।पसन्ददीदा ब्लॉग पढे अच्छा लगे तो सार्थक क्रियात्मक टिप्पणी से नवाजें अन्यथा पचड़े में न पड़ेअच्छी न लगे पोस्ट तो कतई टिप्पणी न करें न अच्छा बता बांस पर चढाए न बुरा कह कर किसी का दिल दुखाएं।
कई ब्लाग आप को सम्मानित करने हेतु बचकाने निरर्थक सवालों  के जवाब पूछते हैं उस में समय बरबाद न करें।
इसी तरह आपके कमेन्ट पर बहस में उल्झाने वाले लोग मिलेंगे उन से कतराकर निकलें।

दुनिया के सबसे प्रभावी मनस-शास्त्र गीता का अनुसरण करें यानि कर्म करें फल [टिप्पणी ] की इच्छा में न पड़े।।

Saturday, February 6, 2010

तुम बतियाते रहे हो इससे उससे जाने किस किस से

सुनो
दोस्त
तुम बतियाते रहे हो
इससे
उससे
जाने किस किस से
भूल गये
इस आपा-धापी
खुद को स्वयं  को
यानी मुझे.
जो बैठा कब का
धड़क रहा है तुम्हारे भीतर
चलो आज अवकाश लेलो
आकस्मिक
या अर्जित
और बैठो मेरे
यानि खुद अपने साथ
पूछो
खुद से खुद का हाल
सहलाओं अपने जख्मों को
बेचारे
कब से तुम्हारी बाट जोह रहे हैं
रिसते रहते हैं
कुछ नहीं कहते हैं
बस मौन रहते हैं
ये रिश्तो की तरह
न तो बौखलाते हैं न पगलाते हैं
कहीं बहुत बेहतर हैं
ये रिसते जख्म
सड़े-गले रिश्तों से
अभी भी सहेजे हैं ये जख्म
अहसासों की टीस
कह सकते हैं
ये जख्म
ऊधो मन न होत दस-बीस
रिश्ते
स्वार्थी हैं
संबंधो के जाल बुनते है
फ़िर पगलाकर सिर धुनते हैं
जख्म तुम्हारे अपने है
जब तब तुम्हे सहलाते हैं
न रिश्तों से बहकाते हैं
न सब्ज-बाग दिखलाते हैं
आओ
बैठो कुछ इनकी सुनो
कुछ अपनी कहो
बहुत हुआ
अब चुप मत रहो

५/२/२०१०



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Thursday, February 4, 2010

नारी सिकुड़ती है, सिमटती है

8
नारी
नारी
सिकुड़ती है, सिमटती है
पुरुष को
रास्ता देने की खातिर
नारी
फैल जाती है
पुरुष के अघ औगुण
ढांपने की
कोशिश में


                                                                  बदलता रूप

                                                                    मैंने
                                                                       उम्रभर देखा है
सिर्फ एक लड़की को
यूँ उसके रूप
बदलते रहे हैं
मौसम की तरह

पहले वह मेरी माँ थी
फिर बहन
फिर पत्नी
फिर बेटी
बेटी फिर माँ बन गई थी
क्योंकि
वह मुझ सा बेटा (नाती) जन गई थी।



 


"चुप भी तो रह पाना मुश्किल-gazal-":यहां देखें
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