कठिन तो नहीं है जीना
रोटी तो
सेठ मजदूर
सभी को देता है करतार
्पीने को
पानी भी उपलब्ध है
सभी जीवों को
किसी को बोतल में बन्द
मिनरल वाटर
तो किसी को पोखर का जल
हाँ तब तक जीना कठिन नहीं है
जब तक हम जीते हैं बायलॉजिकल जीवन
जीना कठिन हो जाता है,
बुद्धिजीवी बनते ही
भैंस या गाय जुगाली करते हैं
निगले हुए खाद्य की
जबकि बुद्धिजीवी जुगाली करता है
विचारों की
तर्कों की कुतर्कों की
तर्कों की कुतर्कों की
और उलझ जाता है खुद भी
उलझा लेता है
औरों को भी
अपने बनाये जाल में जंजाल में
इसीलिये कठिन हो जाता है
जीवन इस धरा पर
मनुष्य का९/६/२०१० १०.०५ सुबह
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