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Monday, August 31, 2009

चान्दनी की नज्म सो रही है-कविता



रात है,
अन्धेरा है
अन्धेरा सो रहा है
दीवारों बाम सो रहे हैं
खासो आम सो रहे हैं
दरवाजे
सिमिट कर बंद हो गए हैं
रोशनदान सो गए हैं
खुली
खिड़की से
बाहर की रात झांकती है
मेरे मन में
जाग रही बात आंकती है
सितारों की बज्म
सो रही है
चान्दनी की नज्म सो रही है
सूरज
औन्धा पड़ा है
पीपल बेहोश खड़ा है
मेरे
भीतर एक दर्द गड़ा है।
दर्द
धड़कता है
जरा सी आहट पर चौंकता है
हवा की
सरसराहट से
जगकर गली का कुत्ता भोंकता है,
फिर
गरदन पलट कर सो जाता है
त पर टंगा
पंखा चल रहा है
मेरे भीतर
एक सवाल जल रहा है
कि जब
मौत का एक दिन मुअइयन है गालिब
तो नींद क्यों
रात भर आती नहीं?
अन्धेरा है
सो रहा है
पर धीरे धीरे
अपनी पहचान खो रहा है
सूरज उठेगा
मुंह धोएगा
काम पर जाएगा
नहीं तो
धूप को क्या खिलाएगा
थका मांदा सा
गोधूलि को लौटेगा
औन्धे मुंह सो जाएगा
लेकिन
मुझे फिर भी
धर्म निभाना होगा
जागते
जाना होगा
क्योंकि
सवाल अभी बाकी है
कि
नींद क्यों नहीं आती
नींद
का भी
अपना इतिहास है
कि जब
नहीं आनी चाहिए
तो आती है
और
जब जरूरत पड़ती है
तो
आवश्यक वस्तुओं सी
गायब हो जाती है
नींद
आती है
तो
सपने आते हैं
सपनों में
पराए हो गए
वे अपने आते हैं
यादों
का सिलसिला रहता है
और
अधिक गोली मत खाओ
मेरा
डाक्टर कहता है
पर
क्या वह जानता है
नींद न आने का दंश
उपजे पूत कमाल
बूड़ो कबीर को वंश
कबीर
की भली कही
तब भला नींद की गोली थी
अपनी चुप्पी
से कर दें पागल, ऐसी बोली थी
खैर वे तो पुरानी बात है
फकीरों की क्या कोई जात है?
जमात है?
सब अकेले हैं
अलमस्त हैं
सब खुद ही दूल्हे हैं
खुद ही बारात हैं
रात है
अन्धेरा हैं
अपनी जगह ढूंढता सवेरा हैं
पर न
मैं किसी का हूं
न कोई मेरा है
रात है
अन्धेरा है।

17,जनवरी1992
11,5 रात्रि

Friday, August 21, 2009

अन्धेरे का दर्द-कविता श्याम सखा


रात है
अन्धेरा है
अन्धेरा जाग रहा है
अपने आप से भाग रहा है
मैं
उसे पकड़ता हूं
वह बार बार हाथों से फिसलता है
पर नहीं
आवागमन से निकलता है
रात है
अन्धेरा है
मुझे
हर तरफ से
अजीब विचारों ने घेरा है
विचार
दीवारों से सर टकराते हैं
दरवाजे
को या तो बंद पाते हैं
या फिर
दरवाजा सिकुड़ कर ताख बन जाता है
बहुत कोशिश करता है रोकने की
पर बाहर का
अन्धेरा
भीतर छन आता है
रात है
अन्धेरा है इसलिए
खिड़कियां नाराज हैं
लड़कियों की हास्टल वार्डन सी
सख्त मिजाज है
विचारों को
आजादी ही देती
विचार
अलमारियों में घुसना
चाहते हैं
पर वहां तो पहले से
सदियों पुराने विचार भरे हैं
मुझे से एक आध
पीढ़ी पुराने
विचार
अपनी बारी
आने की प्रतीक्षा में
चुपचाप खड़े हैं
मैं
यानि मेरे विचार
उनके पूछता हूं
कि
वे कबसे यहां खड़े हैं
पर वे
अपनी चुप्पी तोड़ने पर अड़े हैं
अब मेरे
विचार सोचते हैं
हालांकि सोचना मना है
कि
क्या वे भी पक्ंित में खड़े हो जाएं
रहे
जिंदा वक्त में जड़े हो जाएं
बड़ी
अजीब समस्या है
समाधान नहीं है
विचार हैं
उड़ना चाहते हैं
पर उड़ान नहीं है
सदियों से उड़ते आए हैं
कफस में कभी रहे नहीं
पर आज
बेपर है
भूतकाल है
पर
भविष्य नहीं है
वर्तमान नहीं है
अजीब समस्या है
समाधान नहीं है
इसलिए विचार बार बार
छत से लगे मकड़ी के जाले को निहारते हैं
तो
जी पा रहे हैं
जाले में फंस कर जीवन को नकारते हैं

विचार
आखिर विचार हैं
कोई आदम की औलाद नहीं
कि मायूस हो जाएं
खा लें
नींद की कुछ अधिक गोलियां
और हमेशा के लिए सो जाए
इन कंकरीटी जंगलों में
चूहों के बिल भी तो नहीं हैं
कि उनमें घुस जाएं
मेरी रात के पास
मेरे
अन्धेरे के पास पहले था
अब कोई दिल नहीं है
दिल था
तो बचपन की याद करता था
कभी हंसता था
कभी रोता था
कभी मचलता था
पर लोरी सुनकर सो जाता था
इस तरह
किस्सा तमाम हो जाता था
पर
अब तो
अजीब बात है
जागना
तमाम रात है
निहत्थे ही
अन्धेरों से लड़ना है
रात है
अन्धेरा है
अन्धेरा जगा है
मेरा सगा है।


17जनवरी1992/12.15 रात्रि
मित्रो जनवरी कि इस तन्हा सर्द रात में अन्धेरे पर आधारित यह कविता पूरी होते ही मन के इसी माहौल में -दूसरी कविता उपजी कबीर-गालिब और अन्धेरा /मैं उसे भी पोस्ट करना चाहता था लेकिननेट पर लोग उतावली में रहते हैं इसलिये उसे अगले सप्ताह पोस्ट करूंगा
आपका सदा सा
श्याम सखा श्याम

Monday, August 17, 2009

स्कॉच से भूख जगाकर ....

कभी
खाली पेट
रह
मन्युस्पलैटी के
बम्बे से
पानी पीकर
मैने क्रान्ति-गीत
लिखे थे ।
अब
स्कॉच से
भूख जगाकर
मैं
सत्ता का इतिहास
लिखा करता हूं

Monday, August 10, 2009

पुलिस दयालु है-kavita


पुलिस
दयालु है
वह गुंडो को भी
कुछ नहीं कहती
हां पुलिस
सचमुच दयालु है
पुलिस
वाकई
दयालु है
वह गुंडो को ही
कुछ नहीं कहती

Sunday, August 9, 2009

वाजिब है माँ का दु:खी होना




माँ का दु:खी होना वाजिब है
क्योंकि
उसने बहुत दिन से
अपने बेटे को
खिलखिलाते नहीं देखा

माँ का दु:खी होना वाजिब है
क्योंकि
वह देखती है
कि जब सब सो जाते हैं
तो जागता रहता है
बस उसका अपना अधेड़ होता बेटा।
और जाने क्या-क्या लिखता रहता है

उसका लिखा माँ पढ़ती है
अखबारों में, पत्रिकाओं में
बेटे के दु:
बेटे की लिखी
कविताओं में, नज्मों में,
कहानियों में
हालाँकि
उसे वे सब
बहुत समझ नहीं आती
पर उसके होते हुए
बेटा दु: कागजों पर क्यों लिखता है ?
क्यों नहीं बेटा पहले की तरह
दु:खी होकर
उसके आँचल का
सहारा लेता
सोचती है मां
और दुखी हो जाती है
माँ का दु:खी होना सचमुच वाजिब है

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Wednesday, August 5, 2009

***इंसान ही देख सकता है सपने/कविता


आज
का युवा
मेहनती है ,फुर्तीला है
उसके भीतर भरा
जानकारियों [इन्फर्मेसंस ] का कबीला है
वह चाहता है
उड़ना आकाश में
और सिर्फ़ सितारे छूना भर
नहीं रह गयी है
उसकी हसरत
वह तो पकड़ना चाहता है
सूरज को
बल्कि ठीक कहूँ तो
तो उसकी तमन्ना है
ख़ुद ही सूरज हो जाने की
सूरज होना या
सूरज होने की तमन्ना करना
कोई ग़लत बात नहीं है

उसका सूरज भी
असल में एक
आदमी ही है
नाम है उस सूरज
या आदमी का
बिल -गेट्स
मगर
वह भूल जाता है की
बिल बनने के पीछे
थी खड़ी लिंडा गेट्स
और उसकी दो मासूम प्यारी बच्चियां
जब की
अधिकांस युवा
चाहते हैं यह दौड़
अकेले ही दौड़ना
घर- परिवार
माता- पिता
पति या पत्नी
यहाँ तक की बच्चों
को भी पीछे छोड़
सूरज बनने को
लगता है दौड़
और जब नहीं बन पाता
सूरज
वह
बन बैठता है
ओसामा
जैसे हर आदमी नहीं बन
सकता सूरज
ठीक वैसे ही
हर
ओसामा भी
बम नहीं फोड़ता -फोड़ सकता
पर
वह तोड़ सकता ही
प्यार का बंधन को
घर को परिवार को
इस नाकामी और नफरत
के ज्वार में
क्योंकि
भूल जाता ही वह
कि
प्यार ही
ही वह उर्जा
जो बनाती ही
आदमी को
इंसान
बेहतर इंसान
और
कुछ भी कहें आप
इंसान होना ही
बेहतर है
सूरज या सितारा होने से
क्योंकि
केवल
इंसान ही
देख सकता है
सपने
और केवल
इंसान ही
कर सकता
प्यार
.....................................

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Sunday, August 2, 2009

फनियर साँपों सी तेरी याद-kavita shyam

1. भीड़ में


अपनो
की भीड़ में
अकेला होना
कितना अजीब होता है
ऐसे में आदमी
ख़ुद से दूर
और भीड़ के करीब होता है
रिश्ते लिजलिजे रिश्ते
पाँव तले
सांप से फिसल जाते हैं
और मन भयभीत होकर
कांपता रहता है

2. रेखा

जिंदगी
और मौत के
बीच
एक धूमिल सी रेखा है
जों
जाने कब
मिट जायेगी, किसने देखा है

3. माँ

माँ
क्या
सचमुच
बराबर की माँ है
बेटे की- बेटी की
अगर हाँ
तो क्यों
मनाती है वह
बेटे के पैदा होने का जश्न ?
और क्यों
शामिल होती है
बेटी के पैदा होने के मातम में
क्यों ?

4. मात

हजारों
फनियर साँपों सी
तेरी याद
रोज आती है
मेरे वर्तमान को डस जाती है
और
मेरे भविष्य पर
एक कोहरा
सा छा जाता है
मेरी जिंदगी की
शतरंज की बिसात पर
गैर का पदाति
मेरे शह-सवार
को खा जाता है