!!!

Saturday, December 25, 2010

जब विरह का जोगी अलख जगाता है

जब विरह का जोगी अलख जगाता है
तन झुलसे है और मन अकुलाता है

पलकें बोझिल हो जाती हैं
सांसे थम-थम जाती हैं
धड़कन रटती नाम पिया का
सुध-बुध सारी खो जाती है

तन इकतारा राग वैरागी गाता है

नींद परायी सपन पराये
मनवा एकाकी घबराये
सांसे तसल्ली दे  धड़कन को
धड़कन सांसो को समझाये

कौन भला ये बातें समझ पाता

जब विरह का जोगी अलख जगाता है
तन झुलसे है और मन अकुलाता है

हर सप्ताह मेरी एक नई गज़ल व एक फ़ुटकर शे‘र हेतु http://gazalkbahane.blogspot.com/

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर गीत है ... और क्या भाव है, वाह !

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर विरह गीत ।
    मन के वेदना को दर्शाती रचना ।

    ReplyDelete
  3. सच कहा विरह वेदना जब उठती है तो ऐसा ही हाल होता है…………सजीव चित्रण कर दिया।

    ReplyDelete
  4. .

    पलकें बोझिल हो जाती हैं
    सांसे थम-थम जाती हैं
    धड़कन रटती नाम पिया का
    सुध-बुध सारी खो जाती है...

    व्यथा की बेहतरीन अभिव्यक्ति !

    .

    ReplyDelete
  5. भावपूर्ण बहुत ही सुन्दर गीत...वाह !!!!

    ReplyDelete