धुंध है
कोहरा है
ठिठुर-ठिठुर
बदन हुआ दोहरा है
झीलों में दुबके
बैठे हैं हंस
मौसम झेल रहा
मौसम का दंश
हर और ठिठुरन का पहरा है
परिजन घर में हैं
चोर इसी डर में हैं
राहगीर सभी
बटमारों की जद में हैं
टोपी पहन चौकीदार हुआ बहरा है
कोहरा
है झल्ला गया
सब तरफ़ बस
छा गया
जन जीवन हुआ, पिटा सा मोहरा है
हर सप्ताह मेरी एक नई गज़ल व एक फ़ुटकर शे‘र हेतु
http://gazalkbahane.blogspot.com/
बेहद खूबसूरत लगी आपकी ये रचना ।
ReplyDeleteवाह बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ! इस लाजवाब और उम्दा रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!
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