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Saturday, January 23, 2010
चंदा घर जा बैठा है साहिब
धुंध है
अंधेरा है
नभ से उतर कोहरे ने
धरा को घेरा है
दुबके पाँखी
गइया गुम-सुम
फूलों से भौंरे
तितली गुम
मौसम ने मौन राग छेड़ा है
ठिठुरे मजूर
अलाव ताप रहे
पशु पंछी भी
थर-थर काँप रहे
धुंध में राह ढूंढ रहा सवेरा है
रेल रुकी
उड़ पाते विमान नहीं
सहमी फ़सलें
खेत जोतें किसान नहीं
सूझे हाथ न तेरा मेरा है
सूरज की
किरने हुईं गाइब
चंदा घर जा
बैठा है साहिब
सब जगह कोहरे का डेरा है
हर सप्ताह मेरी एक नई गज़ल व एक फ़ुटकर शे‘र हेतु
http://gazalkbahane.blogspot.com/
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बहुत सुन्दर धन्यवाद्
ReplyDeletekavita kii sabse badee visheshta hotee hai uska saamyik hona. aapne rail-viman sewa ko jis is geet men jis tarah piroya hai, wo kabile-taareef hai.
ReplyDelete5 baar ke pryaas ke baad ROMAN men commena dena pad raha hai. google kii to....!!!!
बहुत ही सुन्दर रचना है ....
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत नवगीत!
ReplyDeleteआप सभी को गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएं एवम् मेरी रचनाएं पसन्द करने हेतु आभार
ReplyDeleteश्याम
वाह बहुत ही सुन्दर रचना ! आपको और आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
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