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Saturday, January 16, 2010

वह कौन थी-?


वह

वह
एक अरसे से
मेरे
पीछे पड़ी थी
मैंने
लाख
पीछा छुड़ाना चाहा
पर
कामयाब नहीं हुआ

मैंने
उसे
एक दिन बहुत डराया
धमकाया
यहाँ
तक कि मैंने
उसे
धमकी दे डाली कि
मैं उसका गला घोंट दूंगा।

वह
मेरी नादानी
पर मुस्कराई
जैसे
कोई बड़ा बुजुर्ग
छोटे बच्चे
की
नादान शरारत पर
मुस्कराता है


मैं
उससे आजिज
आ गया था
वह तो
परछाई से भी
ज्यादा
चिपक गई थी
मुझसे,

जब डराने
धमकाने का
कोई
असर नहीं
हुआ
तो मैं
खुशामद पर उतर आया

जब
खुशामद भी
नाकाम हो गई
तो
मैं
रोने गिड़गिड़ाने लगा

वह मेरे
रोने पर
पसीज गई
और
खुद भी
रोने लगी
उसकी सिसकियों के
बीच मैंने
सुना,
पगले !
हम पर न कभी
मनुष्य का
हुक्म चला है
न चलेगा
वह
और कोई नहीं
मेरे जहन से
लिपटी
एक
पुरानी याद थी
जो
आज भी
अब भी
मेरे
जहन से लिपटी है
मेरे साथ है।

31ण्8ण्97
रात्रिा दो बजे

हर सप्ताह मेरी एक नई गज़ल व एक फ़ुटकर शे‘र हेतु
http://gazalkbahane.blogspot.com/

4 comments:

  1. आपको और आपके परिवार को वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें!
    बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने!

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  2. आपको और आपके परिवार को वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें

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  3. सुन्दर भावों से सुसज्जित.मैं भी आपकी बात से सहमत हूँ
    rachana ravindra

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