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Saturday, May 30, 2009

किशोरियों की तरह कूदते-फाँदते


क्या होगा कोई मनुष्य?
क्या होगा
कोई मनुष्य ऐसा
जिसने न उठाया हो
लुत्फ
बादलों की लुकमींचणी का

क्या होगा
मनुष्य ऐसा
जिसने न देखा हो
उल्काओं को
किशोरियों की तरह कूदते-फाँदते

क्या होगा
कोई मनुष्य ऐसा

जिस के पाँव

न जले हों जेठ की धूप में


क्या होगा
कोई मनुष्य ऐसा

जो न नहाया हो
भादों की बरसात में


क्या होगा
कोई मनुष्य ऐसा
जिस की हड्डियाँ

न ठिठुरी हों पूष मास में


अगर होगा
कोई मनुष्य ऐसा

तो अवश्य ही रहता होगा
वह किसी
साठ सत्तर मन्जिले
कठघरे में

किसी महानगर
कहलाते
चिडिय़ा घर में।

4 comments:

  1. jo koi hoga aisaa......to nischay hee manushya na hoga....achaa andaaj laga...

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  2. डॉ. श्याम जी,


    मनुष्य बने रहने की प्रक्रिया को और जीने के अंदाज को बताती कविता दिल को छू जाती है।

    सादर,


    मुकेश कुमार तिवारी

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