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Monday, May 25, 2009

बारूदी सुरंगों में पागल रहते हैं-एक आजाद नज़्म


2 कलिंग हर चेहरे पे था शिकस्त का धुँआ
कहते हो कैसे इसे, फतेह का कारवां

दिन करता है मीलों-मील,सफर

रात कटती है, लम्हा दर लम्हा
थकान, लाचारी, बेबसी, बेख्याली थी
लबरेज दु:ख से, हर किसी की प्याली थी

तेरे करीब जो भी आया, हलाक हुआ
तेरी आँच में,हर खुशी, हर गम, खाक हुआ

सीख के गया जो तुझसे इल्म
इल्मो
कत्लो-गारत के हुनर से बेबाक हुआ

तेरी भी ऐ कलिंग अजीब मस्ती है
झुकी तेरे रूबरू प्रियदर्शी हस्ती है

नेस्तोनाबूद होकर भी जीता रहा है तू
हर रूह का फटा दामन सीता रहा है तू
जीतकर तुझको जश्ने फतह न कर पाया अशोक

कैसे थे तेरे जख्म, तेरा लहू, तेरा सोग
सोगवार होना पड़ा उसको भी यहाँ
हर चेहरे पे था शिकस्त का धुआँ

देख कर तेरी बरबादी, रो दिया था सम्राट

छोड़ दिए उसी रोज से, सारे शाही ठाठ-बाट

रोता था और अश्क बहाता था वो
अपने किए पर बार-बार पछताता था वो
पीछे मुड़ता था, मुँह छुपाता था, वो

हर बार तबाही को सामने पाता था वो

बड़ी किल्लत थी, बड़ी बेजारी थी
उसने कलिंग जीता था, पर बाजी हारी थी

उसके जहन में, उमड़ रहे थे अश्कों के बादल

उसकी रूह में उठ रही थी, आँधियाँ पागल

छोड़ के कत्ले-आम, अहिंसा को अपनाना पड़ा
महलों को त्याग, फकीरों की राह जाना पड़ा
तब भी क्या मिल पाया था उसे, सकून
उतर गया था उस पर से, जंग का जुनून

तरफ भी जाता था, रोने की सदा आती थी
सोने न देती थी, हर पल जगा जाती थी

उसके हाथों से, शमसीर छूटी थी
जान लिया था उसने, कि तकदीर फूटी थी

हर कतराए-लहू से, गुल उगाए, उसने

अमन की जय बोली, अहिंसा के परचम, फहराए उसने

आज फिर से तुझको उठना होगा कलिंग

सरगोशी करने लगी है, फिर जंग
आज फिर सब हाथों में हैं तलवारें

जहर उगलने लगी है हर जुबां

हर रूह में है अन्धेरा सा कुआँ
हर चेहरे पर है शिकस्त का धुआं

नहीं याद उन्हें हिरोशिमा नागासाकी है

पोखरण की राख में ब्रह्मास्त्र की राख बाकी है

बुद्ध हंसता है¹ वे कहते हैं
बारूदी सुरंगों में पागल रहते हैं

जब सुरंग फटेगी तो कहकहे ढह जाएंगे

एक बार फिर जमींदोज दोजखी गढ्ढे रह जाएंगे।

शेष रह जाएगी गीदड़ों की हुआँ-हुआँ

हर चेहरे पे होगा फिर शिकस्त का धुआँ।

¹बुद्ध हँसता है-विडम्बना देखिए पोखरण १ विस्फोट का कोड वर्ड संकेत शब्दक था बुद्ध हँस रहा है।

4 comments:

  1. नेस्तनाबूत होकर भी जीता रहा तू
    हर रूह का फटा दमन सीता रहा तू

    जब सुरंग फटेगी तो कहकहे ढह जाएंगे
    एक बार फिर जमींदोज दोजखी गढ्ढे रह जाएंगे।
    शेष रह जाएगी गीदड़ों की हुआँ-हुआँ
    हर चेहरे पे होगा फिर शिकस्त का धुआँ।

    वाह ! वाह ! करने को जी कर रहा है, हमेशा की तरह लाजवाब, बहुत ही खूबसूरत शेर बने हैं श्याम जी,
    बधाई
    स्वप्न मंजूषा

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  2. नेस्तनाबूत होकर भी जीता रहा तू
    हर रूह का फटा दमन सीता रहा तू

    --वाह!! बहुत डूब के लिखा है आपने. बधाई.

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  3. आज़ाद नज़्म शब्द पढकर ही अच्छा लगा.."बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे"

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