मेरा
मन करता है
मैं
तुम्हारी
एक तस्वीर बनाऊं
काली-
बहुत काली
काजल सी काली
सियाही से
कितनी
अद्भुत लगोगी तुम
तब
तुम्हारे चेहरे से
बदलते रंग
मेरे सिवा, कौन बूझ पाएगा
आर्ट गैलरी
के
तन्हा कोने में लगी
इस तस्वीर को
कोई नहीं देखेगा
केवल
मैं पढूंगा
तुम्हारे होठों पर
लपक आई-दुष्ट मुस्कान को
केवल मैं
सुनूंगा रातों में गूंजते
मूक राग को- अनूठी तान को
और बज उठेंगे
उसके साथ
मेरी
मन वीणा के तार
मैं रखूंगा
इस तस्वीर को सहेज संवार
बरसात में
और तस्वीरों के रंग जब
धुल जाएंगे
सूर की काली कमर सी
तुम्हारी तस्वीर से तब फूटेगा
इन्द्रघनुष सा
सतरंगी दरिया
पर मैं-क्या करूं?
वह पवित्र काला रंग
कहां से लाऊं
जो
तुमने
आंसुओं में काजल
घोलकर
बनाया था, मेरी खातिर
और मैं खड़ा रहा
काजल से सूनी आंखों का
अबोध
सौन्दर्य देखता
काजली रंग
जाने कहां बह गया
मैं
बस खड़ा रह गया।
!!!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
श्याम जी,
ReplyDeleteसचमुच मजा आ गया. आपके न्यौते को स्वीकारते हुये आया फिर ऐसा लगा यहाँ पहले ही आ जाना था. सखाओं के बीच कोई तकुल्लफ नही होता.
प्रस्तुत कविता अपनी तरह की एक बेमिसाल कविता है जहाँ कवि का अपना आधार है और अपनी कल्पना जिसमें वह माशूक को काली होने की दुआयें देता है. वहीं उसके आँसुओं के रंग के बह जाने पर दुःखी भी होता है.
साधुवाद, स्नेह बनाये रखें.
मुकेश कुमार तिवारी
Sundar rachna...mai isse adhik kuchh kehneka na ikhtiyar rakhti hun na qbiliyat..!
ReplyDeleteMere blog," Aajtak Yahantak" pe tippanee deneke liye shukrguzaar hun!
Gar smay mile to any blogs jaise:
"Kavita"
"Kahanee"
"Sansmaran"
"Baagwaanee"
"Gruhsajja"
"Fiber Art"
"Dharohar"
Adipe nazre inayat kar, rehnumayi karen to khusheebhi hogi aur ehsaanmandibhi...
वह पवित्र काला रंग
ReplyDeleteकहां से लाऊं
जो
तुमने
आंसुओं में काजल
घोलकर
बनाया था, मेरी खातिर...
बहुत सुंदर भाव.
वाह जी वाह बेहद सुंदर
ReplyDeleteसचमुच बहुत अच्छा लगा ... बधाई।
ReplyDelete"अबोध
ReplyDeleteसौन्दर्य देखता
काजली रंग
जाने कहां बह गया
मैं
बस खड़ा रह गया।"
दिल को छू लेने वाले भाव।
सुन्दर कविता।
bahut aacha likha hai….. i always appreciate to people who thought and Wright like this.....
ReplyDeleteaap ka mere blog me swaght hai.....
शाहिल को सरगम, खेतो में पानी, सावन सुहानी, पतझड़ को बहार, धरती को प्यार, राही को रास्ता, मुशाफिर को मंजिल, मृत्यु को जीवन, जीवित को भोजन,