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Wednesday, March 27, 2013

देखूं जो तुमको भांग पीके अबीर गुलाल लगें सब फ़ीके

देखूं जो तुमको भांग  पीके
अबीर गुलाल लगें सब फ़ीके












मोतियाबिन्दी नयनो  में काजल
्नित करता मुझको है पागल










अदन्त मुंह और हंसी तुम्हारी
इसमे दिखता ब्रह्माण्ड है प्यारी










तेरा मेरी प्यार है जारी
 जलती हमसे दुनिया सारी




क्या समझें ये दुध-मुहें बच्चे
कैसे होते प्रेमी सच्चे







दिखे न आंख को कान सुने ना
हाथ उठे ना पांव चले ना





पर मन तुझ तक दौड़ा जाए
ईलू-इलू का राग सुनाए


हंसते क्यों हैं पोता-पोती
क्या बुढापे में न मुहब्ब्त होती



सुनलो तुम भी मेरे प्यारे
कहते थे इक चच्चा हमारे



कौन कहता है बुढापे में मुहब्ब्त का सिलसिला नहीं होता
आम भी तब तक मीठा नहीं होता जब तक पिलपिला नहीं होता






होली में तो गजल-हज्ल सब चलती है
                                                      
जलने दो गर दुनिया जलती है
ही तो होली की मस्ती है 


हर सप्ताह मेरी एक नई गज़ल व एक फ़ुटकर शे‘र हेतु http://gazalkbahane.blogspot.com/

Tuesday, May 1, 2012

फ़्रेंच -पिद आतरे-बनाम संस्कृत पदयात्री








श्याम
सखा की यूरोप-
यात्रा- भाग' 1
पिछले
4माह मैं यूरोप यात्रा पर था। , यात्रा के दौरान वक़्त मिलने पर अपने अनुभव हुए आप भी आनन्द लें
हम आज जेनेवा से 45 किलोमीटर दूरी पर बसे फ़्रेंच कस्बे अन्सी की सैर पर आए हैं। यह कस्बा एक विस्तृत झील के किनारे पर बसा है और यह झील एक नहीं कई झीलों से मिलकर बनी है या कह सकते हैं कि एक ही झील को अलग-अलग जगह कई नाम दे दिये गये हैं। कारण कई जगह इस झील का पाट संकरा हो जाता है और इस संकरे पाट के दोनों ओर के हिस्सों को अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। कसबे की खासियत इसका 300 साल पुराना बाजार है जो संकरी गलियों में बसा है। बिल्कुल हमारे पुराने शहरों जैसा। बस इन लोगों ने अपने आर्किटेक्चर को बिल्कुल 200-300 साल पुराना ही रहने दिया है- वही ईंटो वाली दुकानें, यहां तक की बाजार की सड़कें भी कोबल स्टोन हमारी छोटी ईंटों जैसे पत्थरों की बनी हैं। बाजार के दोनों तरफ़ झील से निकली एक नहर है। यह नहर पहले खेत सींचती थी, अब सैलानियों हेतु इस पर होटल हैं, कुछ व्यापारिक संस्थान भी हैं तथा कुछ रिहाइश भी।
1







आज जिस बात ने सबसे पहले ध्यान खींचा, वह था इस नहर पर बने एक छोटेपुल पर जाने वाले रास्ते पर लगे बोर्ड ने आप भी देखें चित्र-










फ़्रेंच भाषा में लिखा है- फ़्रेंच भाषा में अगर शब्द के अंत में व्यंजन आजाए तो वह मूक रहता है जैसे restorent को फ़्रांसिसी रेस्तरां बोलते हैं यानी
अन्तिम अक्षर टी (t) मूक रहता है। अब आप चित्र को दोबारा देखें और पढें;
यह बनेगा पिद त्रि और इसे हिन्दी में देखें पदयात्री ऐसे अनेक शब्द है जो लगता है संस्कृत भाषा से मिलते-जुलते हैं और इनका अर्थ भी वही है।






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Friday, April 27, 2012

बिन बुने ख्वाब aur सांसों में फंसा अंधेरा

 बिन बुने ख्वाब

मुझे
अभी
कुछ और कहना है
खुद से
पर कैसे कहूं
पर
बिना कहे कैसे रहूं
कहना तो
सरल है
अगर कोई सुनने वाला हो
कितना
बुरा लगता है
जब
ख्वाब हों
पर ख्वाब सुनने वाला ना हो।

27,12,1992

सांसों में फंसा अंधेरा

मैं अन्धेरों में
अन्धेरा ढूंढ रहा था
मगर
अन्धेरा तो मेरे
दिल में बसा था
अन्धेरा तो
मेरी सांसों में फंसा था
अन्धेरा तो
मेरे चारों ओर कसा था
वह
भला मुझे कहां मिलता।


27,12,94 ,12,05am

संवरण

भीड़ में
खड़े होकर
महसूसना
अकेलापन
बरबादियों के
ढेर पर
बैठकर
खिलखिलाना
दुध मुहें
बच्चों की मानिद
इन्हीं
अटपटे तरीकों से
‘श्याम’ कर लेता है
गम अपना बौना।

22 अक्तूबर 1993  भोर वेला



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Sunday, March 4, 2012

जलने दो गर दुनिया जलती है / यही तो होली की मस्ती है

 



देखूं जो तुमको भांग  पीके
अबीर गुलाल लगें सब फ़ीके












मोतियाबिन्दी नयनो  में काजल
्नित करता मुझको है पागल










अदन्त मुंह और हंसी तुम्हारी
इसमे दिखता ब्रह्माण्ड है प्यारी










तेरा मेरी प्यार है जारी
 जलती हमसे दुनिया सारी




क्या समझें ये दुध-मुहें बच्चे
कैसे होते प्रेमी सच्चे







दिखे न आंख को कान सुने ना
हाथ उठे ना पांव चले ना





पर मन तुझ तक दौड़ा जाए
ईलू-इलू का राग सुनाए


हंसते क्यों हैं पोता-पोती
क्या बुढापे में न मुहब्ब्त होती



सुनलो तुम भी मेरे प्यारे
कहते थे इक चच्चा हमारे



कौन कहता है बुढापे में मुहब्ब्त का सिलसिला नहीं होता
आम भी तब तक मीठा नहीं होता जब तक पिलपिला नहीं होता






होली में तो गजल-हज्ल सब चलती है
                                                      
जलने दो गर दुनिया जलती है
ही तो होली की मस्ती है 





चिट्ठाजगत





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Friday, September 2, 2011

Dr.shyam skha shyam appointed Director sahitya acedemy Hariyana

मित्रो ! 
  आप सदैव मेरी रचनाओं को अपने विचारों से सहेजते ,नवाजते रहें हैं | मैं आप सभी का ह्रदय से कृतज्ञ  हूँ |
आप सभी को यह जानकर प्रसन्नता होगी कि महामहिम राज्यपाल हरियाणा द्वारा आपके इस मित्र को directer
साहित्य अकादमी हरियाणा नियुक्त किया गया है.मैंने यह पद कल १ सितम्बर गणेश चतुर्थी के दिन ग्रहण कर लिया है| इस पद दायित्व को निभाने हेतु मुझे आपके ऐसे ही सद् भाव पूर्ण प्रोत्साहन व् दुआओं की आवश्यकता रहेगी |अकादमी पत्रिका हरिगंधा का अगला अंक ग़ज़ल पर आधारित होगा आप अपनी सशक्त ग़ज़ल बहर को जांच कर भेजें \ 
पता    -डाक्टर श्याम सखा श्याम निदेशक हरियाणा साहित्य अकादमी प्लाट नo16,सेक्टर 14 पंचकुला हरियाणा|

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Wednesday, August 31, 2011

पीड़ा का राजकुअंर---गोपाल दास नीरज उर्फ़ जस की तस धर दीनी चदरिया


पीड़ा का राजकुअंर---गोपाल दास नीरज उर्फ़ जस की तस धर दीनी चदरिया
         नीरज नीं आया तां कुड़ियां वी नहीं आणीं,तू तरीख बदल दे। [नीरज जी नहीं आये तो लड़कियां कवि सम्मेलन में नहीं आएंगी, इसलिये तू कवि सम्मेलन की तारीख बदल दे] बात १९६३-१९६५ के बीच की है-स्थान वैश्य शिक्षण संस्थान रोहतक हरियाणा । मैं तब कल्चरल कल्ब का विद्यार्थी सचिव था
हमारे अध्यक्ष थे प्रोफ़ेसर अवस्थी और बोलने वाला था मेरा लंगोटिया दोस्त सुरेन्द्र सचदेवा जिस पर कालेज की अधिकांश लड़कियां मरती थीं। लड़कियों ने यह विरोध सुरेन्द्र के द्वारा मुझ तक पहुंचाया गया था। उन दिनों वैश्य कालेज में स्वस्थ कविसम्मेलनों की परम्परा रही थी जो तब तक चली जब तक फ़ूहड़ हास्य मं पर काबिज नहीं हुआ था।आखिर कवि सम्मेलन की तिथी बदली गई-ऐसा रहा है नीरज का रूतबा- वे सही मायनो में मंच व कविता के सुपर स्टार रहे है,है।
  उस कवि सम्मेलन के बाद मेरा दाखिला एडिकल कालेज में हो गया और वैश्य कालेज में भी कवि सम्मेलनों का काफिला खत्म हो गया। उस दिन नीरज जी को जो सुना वह आज तक हृद्‌य पर अंकित है। आप भी शामिल हो जाएं मेरी यादों की महफिल में
 अस्त-व्यस्त बालों,  अधखुle-अधमुंदे नयनो ,नीचे झूल आये निचले होंठ से जैसे ही नीरज का गीत- मैं पीड़ा का राजकुअंर हूं /तुम शहजादी रूपनगर की/हो गया प्यार अगर हो भी गया तो बोलो मिलन कहां पर होगा/  तो पंडाल में लड़कियों के प्रभाग मे ’कुआंरियां दा दिल मचले/आजा छत्त ते जिंद मेरिये [कुआंरियों का दिल मचलने लगा है इसलिये वे अपने प्रिय को कह रहीं हैं कि कम से कम अपने मकान कीछत पर ही आ जाओ जिससे उसके दर्शन कर ह्रद्‌य मे कुछ शीतलता पड़े} माहौल तारी हो
गया था।
 नीरज सचमुच पीड़ा के राजकुअंर है, विरह के शहंशाह हैं। नीरज ne पीड़ा को विरह को भगवान शि
की तरह ताउम्र कंठ में धारण किया हुआ है। वे सुकरात की तरह विष को पीकर मरे नहीं उन्होने पीड़ा के विष को अमर कर दिया। एक शायर का शे‘र 
दर्द तो जीने नहीं देता मुझे/और मैं मरने नहीं देता उसे 
उनकी फिलास्फ़ी को उजागर करता है।
उन दिनो, चांदनी की चादर सी,जुगनुओं जैसे शब्दों से बुनी,शहद और महुए की शराब रसवन्ती सी      उनकी कुछ रचनाये मन- मस्तिक पर आज भी अंकित हैं। ए रचनायें न केवल महकाती हैं अपितु बहकने को मजबूर कर देतीं हैं।
  उनका गीत

  मां मत हो नाराज कि मैने खुद ही मैली की न चुनरिया

  मैं तो हूं पिन्जरे की मैना क्या जानूं गलियां गलियारे

 तू ही बोली जाऊं देखूं मेला नदी किनारे/

मेलों से अनुराग हुआ जब/ माटी से संबन्ध हुआ तब/

बिल्कुल बेदाग कैसे रह पाये चुनरिया/

जो कुछ हुआ उसे भुला दे /संटी छोड़ बाल सहला दे

तेरी भी ममता न मिली तो जाने क्या कर बैठे गुजरिया
किशोर मन के भीतर से उठती माटी की सौंधी सी,अलबेली गंध क्या भूली जा सकती है?
सपना क्या है नयन सेज पर सोया हुआ आंख का पानी

और टूटना उसका जैसे जागे कच्ची नींद जवानी

गीली उम्र बनाने वालो/डूबे बिना नहाने वालो

केवल कुछ पानी के बह जाने से सावन नहीं मरा करता है
या
केवल कुछ मुखड़ों की नाराजी से दर्पण नहीं मरा करता है।
कलेजा चीरने वाली चीख के साथ-साथ जीने की अदभुत उद्य्याम ललक एक साथ कहां मिलेगी भला?
लो फिर अपत्र हुई डाल अमलतास की।कुछ और बढ़ी अवधि इस अभुझ प्यास की
और उसके बाद
उनका एक और अमर गीत
 सपन झरे फ़ूल से…..
कारवां गुजर गया… गुबार देखते रहे
 मानो पीड़ा का विरह का ज्वाला मुखी फ़ट गया था। पीड़ा को इतनी गरिमा महादेवी के बाद कोई दे पाया है तो हिन्दी में नीरज और पंजाबी में शिव बटालवी ही है

ये पंक्तियां मेरे किशोर मन पर तब से अंकित हैं और मैने इन्हे जस की तस धर दीनी चदरिया की तरह आप तक परोसा है।

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Monday, August 22, 2011

मीरा राधा श्याम -जन्म अष्टमी पर विशेष




सखी री,मोहे नीको लागे श्याम.
मोल मिल्यै तो खरीद लेउं मैं,दैके दूनो दाम
मोहिनी मूरत नन्दलला की,दरस्न ललित ललाम
राह मिल्यो वो छैल-छबीलो,लई कलाई थाम
मौं सों कहत री मस्त गुजरिया,चली कौन सों गाम
मीरां को वो गिरधर नागर,मेरो सुन्दर श्याम
सखी री मोहे नीको लागै श्याम



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