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Wednesday, March 16, 2011

और उसके जिस्म में सिक्के तलाशते लिजे-लिजे हाथों से-- कविता


मायें
क्यों जनती हैं
बेटियां
और फिर क्यों
रोकती हैं
उन्हें प्यार करने को
जबकि
उनकी
बूढी हडि~डयों में
सुलग रहा है
उनका कच्ची उ्म्र का प्यार
गीली लकड़ी की
मानिन्द
धुआंता-सा
और
उस धुएं से
उपजा मोतिया-बिंद
क्यों नहीं देखने देता
उन्हें अपनी बेटी की आत्मा
छटपटाहट
और उसकी टुकुर-टुकुर
देखती आंखें
जो तरस रही हैं देख पाने को
मां की
आंखों में
अपने लिए छुपी
सान्त्वना को
मां
क्यो नहीं सहेज लेती
बेटी के दर्द
को अपनी गोद में
जिससे बेटी
बच जाए
जमाने की
जिल्लत से
और उसके जिस्म में
दहेज के सिक्के
तलाशते
लिजे-लिजे हाथों से





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