जब विरह का जोगी अलख जगाता है
तन झुलसे है और मन अकुलाता है
पलकें बोझिल हो जाती हैं
सांसे थम-थम जाती हैं
धड़कन रटती नाम पिया का
सुध-बुध सारी खो जाती है
तन इकतारा राग वैरागी गाता है
नींद परायी सपन पराये
मनवा एकाकी घबराये
सांसे तसल्ली दे धड़कन को
धड़कन सांसो को समझाये
जब विरह का जोगी अलख जगाता है
तन झुलसे है और मन अकुलाता है
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बहुत सुन्दर गीत है ... और क्या भाव है, वाह !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विरह गीत ।
ReplyDeleteमन के वेदना को दर्शाती रचना ।
सच कहा विरह वेदना जब उठती है तो ऐसा ही हाल होता है…………सजीव चित्रण कर दिया।
ReplyDelete.
ReplyDeleteपलकें बोझिल हो जाती हैं
सांसे थम-थम जाती हैं
धड़कन रटती नाम पिया का
सुध-बुध सारी खो जाती है...
व्यथा की बेहतरीन अभिव्यक्ति !
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भावपूर्ण बहुत ही सुन्दर गीत...वाह !!!!
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