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Thursday, December 30, 2010

मौसम झेल रहा मौसम का दंश-गीत







धुंध है
कोहरा है
ठिठुर-ठिठुर
बदन हुआ दोहरा है

झीलों में दुबके
बैठे हैं हंस
मौसम झेल रहा
मौसम का दंश
हर और ठिठुरन का पहरा है

परिजन घर में हैं
चोर इसी डर में हैं
राहगीर सभी
बटमारों की जद में हैं

टोपी पहन चौकीदार हुआ बहरा है

कोहरा
है झल्ला गया
सब तरफ़  बस
छा गया
जन जीवन हुआ, पिटा सा मोहरा है








हर सप्ताह मेरी एक नई गज़ल व एक फ़ुटकर शे‘र हेतु http://gazalkbahane.blogspot.com/

1 comment:

  1. नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।

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