मुझे
अब तक आस्कर
नहीं मिला
न ही भविष्य में
मिलने की कोई संभावना है
क्योंकि
मैं सपने बेचता नहीं
सपने देखता हूं
और मेरे सपने न तो रंगीन
न ही ग्लैमरस
बेचारे मेरे सरीखे श्वेत-श्याम ही होते हैं
और मेरे जैसे
आम आदमी के सपने
ग्लैमरस कैसे हो सकते हैं
मेरे सपनों में
मेरा पेट भर जाता है
मन तृप्त हो जाता है
डकार लेता है
मेरे बेटे बेटी
पहुंच जाते हैं स्कूल
साफ़ सुथरी वरदी पहने
पर जैसे
ही आंख खुलती है
सच सामने आ खड़ा होता है
आंते मेरी खाली आंते
कुलबुला रही होती हैं भूख से
पत्नी बीमार है
इसलिये जाना पड़ता है
मेरी बेटियों को
कोठियों में झाडू-पौचा लगाने
बरतन मांजने
कहिये
भला
मुझे कभी मिल सकता है
हर सप्ताह मेरी एक नई गज़ल व एक फ़ुटकर शे‘र हेतु
http://gazalkbahane.blogspot.com/
!!!
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शायद कभी नहीं...
ReplyDeleteमैं सपने बेचता नहीं
ReplyDeleteसपने देखता हूं
आस्कर चाहिये तो बेचने पड़ेंगे वर्ना उम्मीद छोड़ देने मे ही भलाई है
त्रासद
नए अंदाज़ के साथ एक बेहतरीन रचना! बढ़िया लगा!
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