अंग-अंग मेंपीड़ा है,कैसीअद्भुत-अनहोनी पीड़ा हैपीड़ा कासंसार बसा हैपीड़ा का हर तार कसा हैमन फिर भी दुविधा में फंसा हैशिराओं मेंधमनियों में बहती है पीड़ाचुपचापभला कब रहती है पीड़ापरपीड़ा की भाषा को समझेऐसा साथी पाना तो कठिन हैपीड़ा कासाथी कौन - सगा कौनपीड़ा बड़बड़ाती है सन्निपात सीसुख बैठा है मौनपीड़ा को समझेगा वहजिसने पीड़ा को पाया हैयूं तोबहुतेरे नेपीड़ा का मीना बाजार सजाया हैरूक जाओ यहींयहीं सुख है मस्ती हैमतबढ़ो आगेआगे तो पीड़ा की बस्ती हैपरमैंने पीड़ा का स्वर पहचाना हैसदाही मैंने पीड़ा को अपना माना हैमैं पीड़ा को छोड़ भी दूंपर नहीं पीड़ा मुझको त्यागेगीचल दूंगा जिधरवह मेरे पीछे-पीछे भागेगी।2-- एक टुकड़ा दर्द-कविता संग्रह से
18ण्3ण्1993
11ण्30 रात्रि
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