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Thursday, October 15, 2009
एक टिप्पणी-हाय टिप्पणी
बहुत सुन्दर, बहुत अच्छे, भईई वाह टिपणी कर
बुरे अच्छे की मत कर यार तू परवाह टिपणी कर
बहर पर हो न हो कोई गज़ल तो भी न तू कुछ सोच
दिखे चाहे न कोई भाव या अल्लाह टिपणी कर
हमें भी तो सिखा दें आप लिखना ये गज़ल साहिब
रहें कहते न सुन कुछ और न दे इस्लाह टिपणी कर
न मानेगा तू तो पछताएगा इक दिन बहुत ज्यादा
तुझे ऐ दोस्त करता हूं मैं आज आगाह टिपणी कर
अगर जो तू कहीं लग जाएगा उनको सिखाने तो
सभी नाराज होंगे तू कहेगा आह, टिपणी कर
रकीबों से निपटना सीख मेरे यार बनकर अनाम
निभा तू भी ब्लागिंग की ये रस्मो-राह टिपणी कर
लिखे अब कौन है रचना, पढे़ है कौन अब रचना,
किये जा पोस्ट बस सप्ताह दर सप्ताह टिपणी कर
यहां भी चलती गुट-बाजी,बना तू भी तो गुट अपना
करे जो तुझको टिपणी कर उसे तू वाह टिपणी कर
अगर है चाह टिप्पणियां मिलें तुझको बहुत सारी
तो लिख टिपणी पे टिपणी सब को कर गुमराह टिपणी कर
लिखेंगे तेरे ब्लोगों पर सभी टिपणी ,बहुत सुन्दर
बनेंगे लोग सारे ही तेरे हमराह टिपणी कर
'सखा' ने देख,अनुभव कर लिखा यह सब ब्लागिंग पर
न तो है यह गज़ल कोई न तू जर्राह टिपणी कर
हर सप्ताह मेरी एक नई गज़ल व एक फ़ुटकर शे‘र हेतु
http://gazalkbahane.blogspot.com/
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बहुत बढिया .. टिप्प्णी कर दिया !!
ReplyDeleteअच्छा है .....!!!
ReplyDeleteप्राइमरी के मास्टर की दीपमालिका पर्व पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें!!!!
तुम स्नेह अपना दो न दो ,
मै दीप बन जलता रहूँगा !!
अंतिम किस्त-
कुतर्क का कोई स्थान नहीं है जी.....सिद्ध जो करना पड़ेगा?
बढ़िया लिखे है..अब सब कुछ तो लिख दिया आपने फिर टिप्पणी कैसे ना करें की बेहतरीन टिप्पणी ग़ज़ल..
ReplyDeleteब्लॉगजगत की पोल खोलती आपकी ये रचना बहुत पसन्द आई लेकिन सभी ऐसे नहीं हैँ..अब यहीं देखिए..मैँने आपके ब्लॉग पर आ कर दो-चार बार टिप्पणी भी की है..आपसे दो बार मिल भी चुका हूँ(हिन्द युग्म के कहानी पाठ वाले सम्मेलन में)लेकिन अभी तक... :-(
ReplyDeleteखैर उम्मीद पे दुनिया कायम है...अगर अपनी दुकान में माल बढिया होगा तो एक ना एक दिन आप खिंचे चले ही आएँगे
इसका तो अर्थ ये है कि हमे टिप्पणी वाला विजेट ही हटा देना चाहिये जब कोई टिप्पनी कर ही जाता है तो हमे क्या एतराज़ हो सकता है फिर हर कोई चाहता है कि उसकी रचना पढी, सराही जाये आप भी ऐसा चाहते ही हैं और जब भी चाहते हैं हम पढते हैं और टिप्पणी देते हैं चलने दीजिये। सब की उमीदों पर पानी क्यों फेरते हैं । अब हम बिना टिप्पणी दिये तो जाने से रहे। दीपावली की शुभकामनायें
ReplyDeleteअब तो मुझे भी आप के यहां टिपण्णी करते डर लगता है जी.... लेकिन यहा गुट वाजी केसी? आप की रचना पढी अच्छी लगी तो शाबस दे दी, इस पर तो आप का हक है, फ़िर सभी ने अपनी सहुलियत के लिये लोगो की एक लिस्ट बना रखी है ता कि कम समय मै उन सब को पढा जाये जो हमे भी पढते है, ओर जब कोई नया एक दो बार आता है तो उसे भी लिस्ट मै शामिल कर लिया जाता है, लेकिन गुट कोई नही है.
ReplyDeleteधन्यवाद
आप को ओर आप के परिवार को दीपावली की शुभकामनाये
sach ko kah diya hai magar tippani karna to log chodenge nhi.
ReplyDeletePYARYE HAMNAM SAKHA... AAPKI PICHHLI RACHNAON KI TULNA MEIN YE TIPPNI WALI BAT KUCHH JANCHI NAHIN. AAKHIR BLOG PAR HUM HAIN KISLIYE? AB JISKEY PAS JO HOGA VAHI TO DEGA.JISEY JO LENA HO LE. HUM TO YAR TARS GYE TIPANIYON KE LIYE. KOI AA KE GALIAN HI NIKAL DE HUM TO USE BHI SHEJ LENGEY NEELKANTH KI TARAH.
ReplyDeleteआपने जो अनुभव किया वो कह दिया
ReplyDeleteमैंने जो अनुभव किया वो कह दिया
एक तराजू में सबको हम तोल सकते नहीं
टिप्पणी के बदले टिप्प्णी मोल सकते नहीं
आप ये जरुर पढें ये है ब्लोगिस्तान...
जाने तेरी नजर में, ये कुफ़्र है कि अपराध मेरा,
ReplyDeleteमेरा जमीर कहता है ,है गुनाह,तो कर गुनाह, टिप्पणी कर।
आप से क्या कहें आप तो खुद ही सखा हैं.. य़ानि मित्र
सो जो मन में आया कह दिया...
मुझे भी आपको टिप्पणी करते डर लग रहा है .....पर आपने बात सही कही है!दीपावली की शुभकामनाये!
ReplyDeleteआपने तो रचना के माध्यम से टिप्पणी पर ठप्पा ठोक दिया . आनंद आ गया .
ReplyDeleteआपने तो एक ही रचना के जरिए पूरे ब्लागजगत का पोस्टमार्टम कर डाला :)
ReplyDeleteउम्दा व्यंग्य रचना!
सपरिवार दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाऎँ!!!!!
ReplyDeleteविवादों में उलझी यह ब्लॉगरों की बस्ती है
जहाँ पे टिप्पणी मँहगी और पोस्ट सस्ती है
टिप्पणी मिलती रहे यह मन तो बहुत करता है
पोस्ट कैसे अच्छी लिखें यह सोच दिल बैठता है
लीजिये टिप्पणी ! अब खुश ?
ReplyDeletehaye tippani......hahaha
ReplyDeleteकलई खुल गयी.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
हा..हा..क्या बात है!!
ReplyDeleteदीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनायें
दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteआपने तो टिपण्णी और टिप्पणीकारों की पोल खोल दी. साहसी रचना, बधाई.
ReplyDeleteदिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं.
समझ अपनी- अपनी, बयां अपना-अपना.
ReplyDeleteहर कोई ज्ञानी हो नहीं सकता.
फिर तो ग़ज़ल को पूरी तरह न समझने वालों को पढ़ने और सुनने का ही अधिकार है, भावव्यक्ति का नहीं......शायद........
अपने को तो जो समझ आया टिपिया दिया, बाकि व्याकरण से अनभिज्ञ............ हा, हा, हा................अपनी ही नादानियों पर, और कर भी क्या सकते हैं.......
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
कथन इतना है बस यारा ,समझ कर टिप्पणी तू कर।
ReplyDeleteसमझ या ना समझ यारा,समझ, बस टिप्पणी तू कर |
तभी तेरी ग़ज़ल पर सब कर करेंगे टिप्पणी ऐ ,श्याम,
कि तू भी हर किसी की ग़ज़ल पर इक टिप्पणी तू कर।
हाँ जी, हम भी आ गये टिप्पणी करने पर ये बात ग़लत है कि हम बिना पढ़े ही टिप्पणी करते हैं।
ReplyDeleteदो लाइनें याद आ रही हैं
ReplyDeleteइलाही क्या करें क्यों कर ज़ियें आखिर कहाँ जायें
कि अरमाँ तीर बन बन कर हमारे दिल में रहते हैं