मौसम की पहली बारिश है और तुम नहीं हो
हवाओं में अजीब साजिश है और तुम नहीं हो
अब तुम्हारे बिना यह मौसम यह हवा क्या है
कोई मुझको कहे तो सही मेरी खता क्या है
मैंने दिलो जान से तुझे चाहा क्या इसकी सजा है
तेरे रूठने की दिलबर और कौनसी वजह है
तू सामने आए, तो तुझे मना लूंगी मैं
इन सन्दल सी बाहों का हार पहना दूंगी मैं
पर तू तो किसी और जुल्फ के खम कैद लगता है
हो गया किसी और बीमार का वैद लगता है
यह फितनागरी अच्छी नहीं है सनम
गैरों से दिलबरी अच्छी नहीं है सनम
जब लौटेगा तो देखना पछताएगा
यह सरू का बूटा ये नैनों के कंवल नहीं पाएगा
मैं रूठी हूँ, सनम तू मना ले मुझको
मैं तो तेरी हूँ, तू भी अपना ले मुझको
मैं तेरी आशनां हूँ, तू भी हाथ बढ़ा दे मुझको
सबक इश्क का, आज पहला पढ़ा दे मुझको
फिर न ये मौसम न ये हवा होगी सनम
बहारों की न फिर फिजां होगी सनम
वस्ल तो जीने का इक बहाना है सनम
इश्क दिल का दिल से मिल जाना है सनम
इश्क में रूह या बदन कहाँ होता है
हम सी लैलाओं में हुस्न कहाँ होता है
हुस्न तो तेरी नजर में समाया है
यही तो उरूजे इश्क का सरमाया ह
ै
यह वक्त निकला तो फिर न आएगा
देखना हाथ मल-मल के तू पछताएगा
ये हुस्न ये जवानी कुछ दिन है यारब
तेरी मेरी ये कहानी कुछ दिन है यारब
फिर तो वक्त अपना ढंग दिखलाएगा
मौसम का भी रंग बदलता जाएगा
फिर न चूड़ियाँ खनकेगी, न पायल छमकेगी
स्याह जुल्फों में दूर से चाँदी चमकेगी
यह तव्वसुम, देखना वीरान हो जाएगा
यह जोबन, दो दिन का मेहमान हो जाएगा
फिर तो बैठेंगे गठिये की दर्द लिए
सुलगते होठों की जगह निगाहें सर्द लिए
आ बैठ कुछ देर मौसम का मजा लें हम
कुछ गुल अपने हँसी ख्वाबों में सजा लें हम
फिर तो यह मेला खुद-ब-खुद बिछुड़ जाएगा
यह दस्ते हिना, देखना इबादत में जुड़ जाएगा
यह मतवाला काजल भी तो बह जाएगा
या तो मैं अकेली या तू अकेला रह जाएगा
हर सप्ताह मेरी एक नई गज़ल व एक फ़ुटकर शे‘र हेतु http://gazalkbahane.blogspot.com/
हवाओं में अजीब साजिश है और तुम नहीं हो
अब तुम्हारे बिना यह मौसम यह हवा क्या है
कोई मुझको कहे तो सही मेरी खता क्या है
मैंने दिलो जान से तुझे चाहा क्या इसकी सजा है
तेरे रूठने की दिलबर और कौनसी वजह है
तू सामने आए, तो तुझे मना लूंगी मैं
इन सन्दल सी बाहों का हार पहना दूंगी मैं
पर तू तो किसी और जुल्फ के खम कैद लगता है
हो गया किसी और बीमार का वैद लगता है
यह फितनागरी अच्छी नहीं है सनम
गैरों से दिलबरी अच्छी नहीं है सनम
जब लौटेगा तो देखना पछताएगा
यह सरू का बूटा ये नैनों के कंवल नहीं पाएगा
मैं रूठी हूँ, सनम तू मना ले मुझको
मैं तो तेरी हूँ, तू भी अपना ले मुझको
मैं तेरी आशनां हूँ, तू भी हाथ बढ़ा दे मुझको
सबक इश्क का, आज पहला पढ़ा दे मुझको
फिर न ये मौसम न ये हवा होगी सनम
बहारों की न फिर फिजां होगी सनम
वस्ल तो जीने का इक बहाना है सनम
इश्क दिल का दिल से मिल जाना है सनम
इश्क में रूह या बदन कहाँ होता है
हम सी लैलाओं में हुस्न कहाँ होता है
हुस्न तो तेरी नजर में समाया है
यही तो उरूजे इश्क का सरमाया ह
ै
यह वक्त निकला तो फिर न आएगा
देखना हाथ मल-मल के तू पछताएगा
ये हुस्न ये जवानी कुछ दिन है यारब
तेरी मेरी ये कहानी कुछ दिन है यारब
फिर तो वक्त अपना ढंग दिखलाएगा
मौसम का भी रंग बदलता जाएगा
फिर न चूड़ियाँ खनकेगी, न पायल छमकेगी
स्याह जुल्फों में दूर से चाँदी चमकेगी
यह तव्वसुम, देखना वीरान हो जाएगा
यह जोबन, दो दिन का मेहमान हो जाएगा
फिर तो बैठेंगे गठिये की दर्द लिए
सुलगते होठों की जगह निगाहें सर्द लिए
आ बैठ कुछ देर मौसम का मजा लें हम
कुछ गुल अपने हँसी ख्वाबों में सजा लें हम
फिर तो यह मेला खुद-ब-खुद बिछुड़ जाएगा
यह दस्ते हिना, देखना इबादत में जुड़ जाएगा
यह मतवाला काजल भी तो बह जाएगा
या तो मैं अकेली या तू अकेला रह जाएगा
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बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeleteसही है... बीता समय थोड़े न लौटकर फिर आएगा...
ReplyDeleteसुन्दर नज़्म...
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपकी रचनाएँ मन को मोह लेती हैं. बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteखूबसूरत भावों को शब्दों में पिरोकर आपने बहुत सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है. एक अनोखा समां सा ही बंध गया है.
ReplyDeleteआपकी इस अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.आपका स्वागत है.
भाव भी, शिल्प भी सब लाजवाब ! वाह !
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