कहो कि जीना है
कहो
कि जीना है
माना
तुम्हारा मरना
बहुत कम को खलेगा
पर इससे
घर का खर्च तो बढ़ेगा
क्या
नहीं नौ मन लकड़ी से
दो महीने चूल्हा जलेगा?
कफ+न
से दो कमीज सिलेंगे
स्कूल की ड्रेस के
झीनी - सी
रजाई में तुम्हारे साथ सोने से
बच्चों
को सर्दी तो नहीं सताएगी
तुम
मर गए तो
भला पत्नी टिकुली कैसी लगाएगी?
पांच बच्चों
के अलावा
कभी कुछ दिया है उसको
जो
यह सांकेतिक सुख भी छीना है
कहो
कि जीना है
कबन्ध
हुए हो तो क्या डर है?
यहां कौन
तुमसे कद्दावर है?
किसके कन्धों पर
अब सर है?अब यहां
या तो
भुतहा सन्नाटा है
या फिर
हर-हर महादेव
अल्लाहो-अकबर है
रहो
इस दुनिया में
बहुत काला
गाढ़ा धुंआ फैला है
नीला अम्बर
हुआ मटमैला है
मत भागो
गंगा जल में घुला हलाहल
और किसी को
नहीं, तुम्हें ही पीना है
कहो
कि जीना है
माना
रोटी रोजी के लाले हैं
माना
लोगों ने आस्तीनों में सांप पाले हैं
पर
कुछ वे भी तो हैं,
जो
अपने हाथों पर आसमान संभाले हैं
तुम भी
तो कुछ कर दिखलाओ
सब को
मिलकर ही धरती का
फटा दिल सीना है
कहो कि
जीना है।
कहो
कि जीना है
माना
तुम्हारा मरना
बहुत कम को खलेगा
पर इससे
घर का खर्च तो बढ़ेगा
क्या
नहीं नौ मन लकड़ी से
दो महीने चूल्हा जलेगा?
कफ+न
से दो कमीज सिलेंगे
स्कूल की ड्रेस के
झीनी - सी
रजाई में तुम्हारे साथ सोने से
बच्चों
को सर्दी तो नहीं सताएगी
तुम
मर गए तो
भला पत्नी टिकुली कैसी लगाएगी?
पांच बच्चों
के अलावा
कभी कुछ दिया है उसको
जो
यह सांकेतिक सुख भी छीना है
कहो
कि जीना है
कबन्ध
हुए हो तो क्या डर है?
यहां कौन
तुमसे कद्दावर है?
किसके कन्धों पर
अब सर है?अब यहां
या तो
भुतहा सन्नाटा है
या फिर
हर-हर महादेव
अल्लाहो-अकबर है
रहो
इस दुनिया में
बहुत काला
गाढ़ा धुंआ फैला है
नीला अम्बर
हुआ मटमैला है
मत भागो
गंगा जल में घुला हलाहल
और किसी को
नहीं, तुम्हें ही पीना है
कहो
कि जीना है
माना
रोटी रोजी के लाले हैं
माना
लोगों ने आस्तीनों में सांप पाले हैं
पर
कुछ वे भी तो हैं,
जो
अपने हाथों पर आसमान संभाले हैं
तुम भी
तो कुछ कर दिखलाओ
सब को
मिलकर ही धरती का
फटा दिल सीना है
कहो कि
जीना है।
हर सप्ताह मेरी एक नई गज़ल व एक फ़ुटकर शे‘र हेतु http://gazalkbahane.blogspot.com/
सब को
ReplyDeleteमिलकर ही धरती का
फटा दिल सीना है
सुन्दर भाव की रचना ... यकीनन मिलकर ही तो धरती का फटा दिल सी पायेंगे
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (6/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
बहुत सुन्दर कविता ... जिंदगी कैसी भी हो मौत से तो बेहतर होगी .... इसी बात को सुन्दर तरीके से कहा है आपने ... हार कर मौत को गले लगाने से बेहतर है जिंदा रहकर लढना ..
ReplyDeleteस्तब्ध रह गयी .....सच अब तो जीना ही है .....
ReplyDeleteतुम
ReplyDeleteमर गए तो
भला पत्नी टिकुली कैसी लगाएगी?
पांच बच्चों
के अलावा
कभी कुछ दिया है उसको
जो
यह सांकेतिक सुख भी छीना है
कहो
कि जीना है
भावुक कर दिया इन पंक्तियों ने...
बेजोड़ लिखते हैं आप...पर सच कहूँ तो इतने दिन से आपकी जितनी भी रचनाएं पढ़ीं हैं,उन सबमे यह सर्वोत्तम लगा है मुझे...
आपकी लेखनी को नमन !!!
सब को
ReplyDeleteमिलकर ही धरती का
फटा दिल सीना है|
सुन्दर भाव की रचना| धन्यवाद|