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Sunday, September 28, 2008

अंग सभी पुखराज तुम्हारे

मनमोहक अन्दाज तुम्हारे
सचमुच बेढ़्ब नाज तुम्हारे

मेरे मन के ताजमहल में
निशि-दिन गूंजें साज तुम्हारे

खजुराहो के बिम्ब सरीखे
अंग सभी पुखराज तुम्हारे

डर कर भागे चांद सितारे
जब देखे आगाज़ तुम्हारे

अपने दिल में हमने छुपाये
पगली कितने राज़ तुम्हारे

सुनना भूले गीत ग़ज़ल हम
सुन मीठे अल्फ़ाज तुम्हारे

कल थे हम,हां कल भी रहेंगे
जैसे हम हैं आज तुम्हारे

जब तक दिल में ‘श्याम’रखो तुम
हैं तब तक सरताज तुम्हारे

1 comment:

  1. ...बहुत सुंदर श्याम जी.मजा आ गया.खास कर इन दोनों शेर ने कहर बरपाया है:-
    खजुराहो के बिम्ब सरीखे
    अंग सभी पुखराज तुम्हारे
    और
    अपने दिल में हमने छुपाये
    पगली कितने राज़ तुम्हारे

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