!!!
Wednesday, June 11, 2008
intzar
प्रतीक्षा
रोज दोपहर तक
नयन बैठे रहते हैं
बाहर जंगले वाले दरवाजे पर
डाकिये की प्रतीक्षा में
उसके साइकल की घंटी पर
मन जा बैठता है
लैटर-बाक्स के
भीतर फिर सड़क पर
बैठे ज्योतिषी के तोते सा
ढ़ूंढ़ता है चिट्ठियों के ढेर में तुम्हारी
चिट्ठी जिसकी आस में अटकी है
सांस जो आई नहीं अब तक कब आयेगी ?
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कविता
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